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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 131 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान । हो, उसके अनुसार ही स्नात्र-संख्या का यथाक्रम एक सौ आठ या चौंसठ या पच्चीस या सोलह या आठ या पाँच या तीन या दो या एक का निर्णय करें, क्योंकि उसके अनुसार ही घटों की संख्या होती है। उन घटों को चंदन, अगरू, कपूर, कुंकुम से पूजते हैं एवं उनके चारों तरफ स्वस्तिक करते हैं और उनके कंठों को (कांठे को) पुष्पमाला आदि से विभूषित करते हैं। तत्पश्चात् सर्वतीर्थों के लाए गए जल से पूर्व में कहे गए अनुसार मंत्रयुक्त पवित्र जल से तथा चन्दन, अगरू, कस्तूरी, कर्पूर, कुंकुम आदि मिश्रित जल से, पाटल आदि पुष्पों से अधिवासित जल से एवं निर्मल जल से उन कलशों को भरें। पूर्वोक्त वेश धारण किए हुए अर्थात् जिन उपवीत धारण किए हुए, उत्तरासंग से युक्त, जूड़ा बांधे हुए, स्नान किए हुए एवं बारह तिलक लगाए हुए स्नात्रकार (स्नान कराने वाले) परमेष्ठीमंत्र पढ़कर उन कलशों को अपने-अपने हाथ में ग्रहण करें। फिर स्नात्र कराने वाले और अन्य श्रावकजन अपने-अपने अभ्यास के अनुसार परमात्मा की स्तुति से गर्भित षट्पद, अर्हणादि आदि स्तोत्र और पूर्व कवियों द्वारा निर्मित जिनाभिषेक सम्बन्धी काव्य बोलते हैं। तत्पश्चात् “नमो अरिहंताणं" तथा "नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्य" बोलकर निम्न श्लोक बोलें - ___ “पूर्व जन्मनि विश्वभर्तुरधिकं सम्यक्त्वभक्तिस्पृशः सूतेः कर्म समीरवारिदमुखं काष्ठाकुमार्यो व्यधुः। तत्कालं तविश्वरस्य निबिडं सिंहासनं प्रोन्नतं वातोद्भूतसमुधुरध्वजपटप्रख्यां स्थितिं व्यानशे।।१।। क्षोभात्तत्र सुरेश्वरः प्रसृमरक्रोधक्रमाक्रान्तधीः कृत्वालक्तकसिक्तकूर्मसदृशं चक्षुःसहनं दधौ। वज्रं च स्मरणागतं करगतं कुर्वन्प्रयुक्तावधिज्ञानात्तीर्थकरस्य जन्मभुवने भद्रंकरं ज्ञातवान् ।।२।। नम नम इति शब्दं ख्यापयंस्तीर्थनाथं स झटिति नमति स्म प्रोढ़सम्यक्त्वभक्तिः। तदनु दिवि विमाने सा सुघोषाख्यघण्टा सुररिपुमदमोदाघातिशब्दं चकार ।।३।। द्वात्रिंशल्लक्षविमानमण्डले तत्समा महाघण्टाः। ननदुः सुदुःप्रधर्षा हर्षोत्कर्ष वितन्वन्त्यः ।।४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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