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आचारदिनकर (खण्ड-३) 130 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
पुनः घृत का कलश हाथ में लेकर निम्न छंदपूर्वक बिम्ब का घृतस्नात्र करें -
"स्निग्ध मृदु पुष्टिकरं जीवनमतिशीतलं सदाभिख्यम् । जितमतवद्धृतमेतत्पुनातु लग्नं जिनस्नात्रे ।।
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का घृतस्नात्र करें। पुनः इक्षुरस का कुंभ लेकर निम्न छंद बोलें -
“मधुरिमधुरीण विधुरितसुधाधराधार आत्मगुणवृत्त्या। शिक्षयतादिक्षुरसो विचक्षणौघं जिनस्नात्रे ।।"
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का इक्षुरस से स्नात्र करें। पुनः शुद्ध जल का कलश लेकर निम्न छंद बोलें - . “जीवनममृतं प्राणदमकलुषितमदोषमस्तसर्वरुजम्। जलममलमस्तु तीर्थाधिनाथबिम्बानुगे स्नात्रे ।।
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का जल से स्नात्र करें -
इस प्रकार पंचामृत स्नात्र करें। पुनः सहन मूल मिश्रित जल का कलश लेकर निम्न छंद बोलें -
“विघ्नसहस्रोपशमं सहस्रनेत्रप्रभावसद्भावम् । दलयतु सहनमूलं शत्रुसहनं जिनस्नात्रे ।।"
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का सहनमूल मिश्रित जल से स्नात्र करें। पुनः शतमूल मिश्रित जल का कलश लेकर निम्न छंद बोलें -
“शतमर्त्यसमानीतं शतमूलं शतगुणं शताख्यं चं। शतसंख्यं वांछितमिह जिनाभिषेके सपदि कुरुताम् ।।।
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का शतमूल मिश्रित जल से स्नात्र करें। पुनः सर्वौषधिगर्भित जल का कलश लेकर निम्न छंद बोलें -
“सर्वप्रत्यूहहरं सर्वसमीहितकरं विजितसर्वम्। सर्वौषधिमण्डलमिह जिनाभिषेके शुभं ददताम् ।।"
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का सर्वोषधि मिश्रित जल से स्नात्र करें तथा “ऊर्ध्वायो' छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपण करें। तत्पश्चात् शक्रस्तव का पाठ करें। तत्पश्चात् शक्ति के अनुसार सोने, चाँदी, ताँबे या मिट्टी के कलश द्विकयोग या त्रिकयोग-विधि के अनुसार बनाएं और उन कलशों को स्थापनक (पट्ट) के ऊपर स्थापित करें। जैसी शक्ति
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