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आचारदिनकर (खण्ड-३) 129 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान बनाकर या आलेखन करके मात्र तिलकदान पूर्वक (लगाकर) उसकी स्थापना करें। पीठ पर दिशाओं के अधिष्ठायक दिक्पालों एवं ग्रहों का प्रदक्षिणाकारपूर्वक आह्वान, स्थापना एवं पूजन करें। कुसुमांजलि देना आदि सभी क्रियाएँ नंद्यावर्त्त-विधि में बताई गई विधि के अनुसार तथा उन्हीं काव्यों से करें। दिक्पालों, गृहों आदि देवों की पूजा करें और जिनबिम्ब को पंचामृत-स्नान कराएं। उसकी विधि इस प्रकार है -
कुसुमांजलि हाथ में लेकर निम्न छंदपूर्वक पुष्पांजलि दें - ___ “पूर्व जन्मनि मेरु भूध्रशिखरे सर्वैः सुराधीश्वरै राज्योभूतिमहे महर्द्धिसहितैः पूर्वेऽभिषिक्ता जिनाः ।। तामेवानुकृतिं विधाय हृदये भक्ति प्रकर्षान्विताः कुर्मः स्वस्व गुणानुसारवशतो बिम्बाभिषेकोत्सवम् ।।"
___ उपर्युक्त छंदपूर्वक पुष्पांजलि अर्पित करें। पुनः हाथ में पुष्पांजलि लेकर निम्न छंद बोले -
"मृत्कुम्भाः कलयन्तु रत्नघटितां पीठं पुनर्मेरुतामानीतानि जलानि सप्तजलधिक्षीराज्यदध्यात्मताम् ।।
बिम्बं परागतत्वमत्र सकलः संघः सुराधीशतां येन स्यादयमुत्तमः । सुविहितं स्नात्रभिषेकोत्सवः ।।
उपर्युक्त छंदपूर्वक पुष्पांजलि प्रक्षिप्त करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर निम्न छंद बोलें -
“आत्मशक्ति समानीतैः सत्यं चामृतवस्तुभिः। तद्वार्धिकल्पनां कृत्वा स्नपयामि जिनेश्वरम् ।।
उपर्युक्त छंदपूर्वक पुष्पांजलि प्रक्षिप्त करें। तत्पश्चात् दूध का कलश हाथ में लेकर निम्न छंद बोलें -
"भगवन्मनोगुणयशोनुकारिदुग्धाब्धितः समानीतम्। दुग्धं विदग्धहृदयं पुनातु दत्तं जिनस्नात्रे ।।"
उपर्युक्त छंदपूर्वक बिम्ब का क्षीरस्नात्र करें, अर्थात् बिम्ब को दूध से स्नान कराएं। पुनः दही का कलश हाथ में लेकर निम्न छंदपूर्वक बिम्ब का दधिस्नात्र करें -
___“दधिमुखमहीध्रवर्णंदधिसागरतः समाहृतं भक्त्या। दधि विदधातु शुभविधिं दधिसारपुरस्कृतं जिनस्नात्रे ।।
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