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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 121 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान कालपाशपरिघातबहुबलं कालपाशकृतहारविहरणम् । नीलकण्ठसखिसन्निभनिनदं नीलकण्ठहसितोत्तमयशसम् ।। न्यायबन्धुरविचारविलसनं लोकबन्धुरविचारिसुमहसम् । शीलसारसनवीरतनुधरं सर्वसारसनवीरमुपनये।। इन छंदों द्वारा कुसुमांजलि चढ़ाएं तथा निम्न छंद बोलें - __ "विनयविनयवाक्यस्फारयुक्तोरयुक्तः पुरुषपुरुषकारात् भावनीयोवनीयः। ___ जयतु जयतुषारो दीप्रमादे प्रमादे सपदि सपदि भक्ता वासधूपः सधूपः ।।" इस छंद द्वारा संयुक्त धूप-उत्क्षेपण करें। तत्पश्चात् शक्रस्तव का पाठ बोलें तथा “ऊर्ध्वायो" छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपण करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर स्वागता छंद के राग में निम्न छंद बोले - “आततायिनिकरं परिनिघ्नन्नाततायिचरितः परमेष्ठी। एकपादरचनासुकृताशीरेकपाददयिताकमनीयः।। वर्षदानकरभाजितलक्ष्मीश्चारुभीरुकरिभाजितवित्तः। मुक्तशुभ्रतरलालसहारो ध्वस्तभूरितरलालसकृत्यः ।। युक्तसत्यबहुमानवदान्यः कल्पितद्रविणमानवदान्यः । देशनारचितसाधुविचारो मुक्तताविजितसाधुविचारः ।। उक्तसंशयहरोरुकृतान्तस्तान्तसेवकपलायकृतान्तः। पावनीकृतवरिष्ठकृतान्तस्तां तथा गिरमवेत्य कृतान्तः।। यच्छतु श्रियमनर्गलदानो दानवस्त्रिदशपुण्यनिदानः। दानवार्थकरिविभ्रमयानो यानवर्जितपदोतिदयानः।।" - इन छंदों द्वारा कुसुमांजलि चढ़ाएं तथा निम्न छंद बोलें - "अमृतविहितपोषं शैशवं यस्य पूर्वादतपथानिदेशाद्दुर्धरा कीर्तिरासीत्। ___ अमृतरचितभिक्षा यस्य व्रत्तिव्रतादोरमृतममृतसंस्थस्यार्चनायास्तु तस्य ।। इस छंद से बिम्ब पर जल-पूजा करें। पुनः शक्रस्तव का पाठ करें तथा “ऊर्ध्वायो" छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपण करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर प्रहर्षिणी छंद की राग में निम्न छंद बोलें - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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