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आचारदिनकर (खण्ड-३) 115 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
इन पाँच छंदों द्वारा कुसुमांजलि दें। फिर निम्न छंद बोलें - “निरामयत्वेन मलोज्झितेन गन्धेन सर्वप्रियताकरेण। गुणैस्त्वदीयाऽतिशयानुकारी तवागमां गच्छतु देवचंद्रः।।
इस छंद से बिम्ब पर कर्पूर लगाएं। शक्रस्तव का पाठ करें तत्पश्चात् “ऊर्ध्वाधो.“ छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपण करें। इसके बाद पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर बसंततिलका छंद के राग में निम्न छंद बोलें
“संसारवारिनिधितारण देवदेव संसारनिर्जितसमस्तसुरेन्द्रशैल। संसारबन्धुरतया जितराजहंस संसारमुक्त कुरु मे प्रकटं प्रमाणम् ।।
रोगादिमुक्तकरणप्रतिभाविभास कामप्रमोदकरणव्यतिरेकघातिन्। पापाष्टमादिकरण- प्रतपःप्रवीण मां रक्ष पातकरणश्रमकीर्णचित्तम् ।।
____ त्वां पूजयामि कृतसिद्धिरमाविलासं नम्रक्षितीश्वरसुरेश्वरसद्विलासम्। उत्पन्नकेवलकलापरिभाविलासं ध्यानाभिधानमयचंचदनाविलासम् ।।
गम्यातिरेकगुणपापभरावगम्या न व्याप्नुते विषयराजिरपारनव्या। सेवाभरेण भवतः प्रकटेरसे वा तृष्णा कुतो भवति तुष्टिव (म) तां च तृष्णा।।
वन्दे त्वदीयवृषदेशनसद्मदेवजीवातुलक्षितिमनन्तरमानिवासम् । आत्मीयमानकृतयोजनविस्तराढ्यं जीवातुलक्षितिमनन्तरमानिवासम् ।।"
इन पाँच छंदों द्वारा कुसुमांजलि दें। फिर निम्न छंद बोलें -
"नैर्मल्यशालिन इमेप्यजड़ा अपिण्डाः संप्राप्तसद्गुणगणा विपदां निरासाः।
___त्वद्ज्ञानवज्जिनपते कृतमुक्तिवासा वासाः पतन्तु भविनां भवदीय देहे।।
इस छंद से बिम्ब पर वासक्षेप करें। पुनः शक्रस्तव का पाठ करें तथा “ऊर्ध्वाधो“ छंदपूर्वक धूपउत्क्षेपण करें। इसके बाद पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर मालिनी छंद के राग में निम्न छंद बोलें -
" “सुरपतिपरिक्लृप्तं त्वत्पुरो विश्वभर्तुः कलयति परमानन्दक्षणं प्रेक्षणीयम्। न पुनरधिकरागं शान्तचित्ते विधत्ते कलयति परमानन्दक्षणं प्रेक्षणीयम् ।।
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