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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 114 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान जयं जीवं भानुं बलिनमनिशं संगत इलाविलासः सत्कालक्षितिरलसमानो विसरणे। (चतुर्थ पद्य में भी प्रथम एवं द्वितीय पद के समान ही तृतीय एवं चतुर्थ पद को जाने) अमाद्यद्वेषोऽर्हन्नवनमनतिक्रान्तकरणैरमाद्यद्वेषोऽर्हन्नवनमनतिक्रान्त करणैः। सदा रागत्यागी विलसदनवद्यो विमथनः सदारागत्यागी विलसदनवद्यो विमथनः।। इन पाँच छंदों द्वारा कुसुमांजलि दें। तत्पश्चात् निम्न छंद बोलें 'घाणतर्पणसमर्पणापटुः क्लृप्तदेवघटनागवेषणः । यक्षकर्दम इनस्य लेपनात्कर्दमं हरतु पापसंभवम् ।। इस छंद द्वारा बिम्ब के यक्षकर्दम (एक प्रकार का लेप जिसमें कपूर, अगर, कस्तूरी एवं कंकोलादि समान मात्रा में डाले जाते हैं) का लेप करें। पुनः शक्रस्वत का पाठ करें तथा “ऊर्ध्वाधो" छंदपूर्वक धूप-उत्क्षेपण करें। पुनः हाथ में कुसुमांजलि लेकर मंदाक्रान्ता छंद के राग में निम्न छंद बोलें - “आनन्दाय प्रभव भगवनङ्गसङ्गावसान आनन्दाय प्रभव भगवन्नङ्गसङ्गावसान। आनन्दाय प्रभव भगवनङ्गसङ्गावसान आनन्दाय प्रभव भगवन्नङ्गसगावसान।।। भालप्राप्तप्रसृमरमहाभागनिर्मुक्तलाभं देवव्रातप्रणतचरणाम्भोज हे देवदेव। जातं ज्ञानं प्रकटभुवनत्रातसज्जन्तुजातं हंसश्रेणीधवलगुणभाक् सर्वदा ज्ञातहंसः।। जीवन्नन्तर्विषमविषयच्छेदक्लृप्तासिवार जीवस्तुत्यप्रथितजननाम्भोनिधौ कर्णधारः। जीवप्रौढ़िप्रणयनमहासूत्रणासूत्रधार जीवस्पर्धारहितशिशिरेन्दोपमेयाब्दधार।। पापाकाङ्क्षामथन मथनप्रौढिविध्वंसिहेतो क्षान्त्याघास्थानिलय निलयश्रान्तिसंप्राप्तत्क। साम्यक्राम्यन्नयननयनव्याप्तिजातावकाश स्वामिन्नन्दाशरणशरणप्राप्तकल्याणमाला।। जीवाः सर्वे रचितकमल त्वां शरण्यं समेताः क्रोधाभिख्याज्वलनकमलक्रान्तविश्वारिचक्रम्। भव्यश्रेणीनयनकमलप्राग्विबोधैकभानो मोहासौख्यप्रजनकमलच्छेदमस्मासु देहि।।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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