________________
आचारदिनकर (खण्ड-३)
106
प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान चारों कोनों के श्वेत स्थान पर स्थापित करें। घी, गुड़ सहित प्रज्वलित मंगलदीपक नंद्यावर्त्तपट्ट की चारों दिशाओं में रखें। पुनः चारों दिशाओं में चाँदी, कौड़ी, रक्षापोटली, जल एवं धान्य सहित चार कलश स्थापित करें। उनकी पूजा और कंकण - बन्धन की क्रिया सुकुमारिकाएँ करती है । उनके ऊपर चार यववारक को स्थापित करें और उनमें से प्रत्येक को चार लड़ी वाले कौसुम्भसूत्र से वेष्टित करें। फिर शक्रस्तवपूर्वक चैत्यवंदन करें। अधिवासना ( प्राणप्रतिष्ठा) का समय एकदम नजदीक आने पर बिम्ब पर पुष्पसहित ऋद्धि-वृद्धि, मदनफल एवं अरिष्ट से निर्मित कंकण बांधें। चौबीस हाथ परिमाण चन्दन से वासित एवं पुष्पों से युक्त सदश नवीन श्वेतवस्त्र से बिम्ब को आच्छादित करें और एक मातृशाटिका से पार्श्वभाग को वेष्टित करें। फिर उस पर चंदन के छींटे दें एवं पुष्पपूजन करें। फिर गुरु बिम्ब की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। अधिवासना (प्राणप्रतिष्ठा ) का मंत्र निम्न है -
“ऊँ नमो खीरासवलद्धीणं ॐ नमो महुआसवलद्धीणं ॐ नमो संभिन्नसोईणं ॐ नमो पायाणुसारीणं ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं जमियं विज्जं पंउजामि सा में विज्जा पसिज्झउ ऊँ अवतर - अवतर सोमे - सोमे ॐ वज्जु- वज्जु ऊँ निवज्जु-निवज्जु सुमणसे सोमणसे महुमहुरे कविल ॐ कक्षः स्वाहा ।" अथवा
१.
“ॐ नमः शान्तये हूं क्षं हूं सः " इस मंत्र से बिम्ब के सभी अंगों पर हाथ रखकर बिम्ब की प्राणप्रतिष्ठा करें। फिर शालि (चावल) २. यव (जौ) ३. गोधूम ४. मुद्ग (मूंग) ५. वल्ल (वाल ) ६. चणक ( चना ) एवं ७. चवलक (चवला) धान्यों को पुष्पों से युक्त कर उससे भरी हुई अंजली से बिम्ब को स्नान कराएं। सप्तधान्य से स्नान कराने का छंद निम्न है
इन सात
“सर्वप्राणसमं सर्वधारणं
सर्वजीवनम् ।
-
प्रीणयतु समस्त सुरवृन्दनम् । ।“
Jain Education International
-
-
भवत्वन्नं महार्चने । । "
सभी जगह पुष्प चढ़ाएं एवं धूप - उत्क्षेपण करें। धूप - उत्क्षेपन का छंद निम्नांकित है
For Private & Personal Use Only
-
“उर्ध्वगतिदर्शनालोकदर्शितानन्तरोर्ध्वगतिदानः । धूपो वनस्पतिरसः
अजीवजीवदानाय
www.jainelibrary.org