SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 105 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान अक्षत) ५. नारियल ६. मुद्रा ७. धूपपुटिका ८. दीप ६. नैवेद्य के सकोरे आदि - इन नौ वस्तुओं को एकत्रित करें। इस प्रकार वस्तुओं की कुल संख्या निम्नांकित है - (१) जलाचमन - २६१ (२) चन्दनादितिलक - २६१ (३) पुष्प - २६१ (४) अक्षत मुष्टि - २६१ (५) प्रत्येक जाति के नारियल - २६१ (६) चाँदी-सोने की मुद्राएँ - २६१ (७) धूपपुटिका - २६१ (८) दीप - २६१ (६) नैवेद्य के सकोरे - २६१ - इन वस्तुओं के अतिरिक्त प्रतिष्ठा कराने वाले ब्राह्मण, ब्रह्मचारी आदि द्वारा किए जाने वाले होम के लिए निम्न परिमाण में वस्तुएँ बताई गई हैं - घी, पायस एवं खंड (इक्षुखंड) - इनके मिश्रण से युक्त शराब - २६१, सर्वजाति के फल - २६१, समिधा हेतु प्रचुर मात्रा में पीपल, आम्र, कैथ, उदुम्बर, अशोक एवं बबूल वृक्ष की लकड़ियाँ - यह नंद्यावर्त्त-पूजा की विधि है। नंद्यावर्त्त के मध्य में यदि चलबिम्ब होता है, तो वहाँ मन से नंद्यावर्त्त के मध्य में स्थिरबिम्ब को स्थापित करें। तत्पश्चात् दो सौ इक्यानवे हाथ परिमाण सदशवस्त्र से नंद्यावर्त्तपट्ट को आच्छादित करें। वस्त्र से आच्छादित नंद्यावर्त के ऊपर विविध प्रकार के सुमधुर एवं सुगन्धी फल यथा - नारियल, बिजौरा, नारंगी, पनस (कटहल), द्राक्षादि शुष्क तथा आर्द्र फल एवं विविध प्रकार की भोजन-सामग्री चढ़ाएं। तत्पश्चात् बाहर की तरफ वेदिका के चारों कोनों में वारी कन्या द्वारा काते गए सूत्र को चौगुना करके बांधे। फिर चारों दिशाओं में उस श्वेत स्थान के ऊपर जवारारोपण के सकोरों को स्थापित करें। चारों दिशाओं में एक के ऊपर एक इस प्रकार चार-चार घड़े रखें - इस प्रकार चारों दिशाओं के कुल सोलह घड़े होते हैं। यववारा (जवारा) के सकोरे अंकुरित जौ से युक्त होते हैं। वेदी के चारों कोनों में - १. बाट (लापसी) २. खीर ३. करम्ब ४. कसार (कृसरा) ५. कूर ६. चूरमापिंड एवं ७. पुए - इन सात वस्तुओं से पूर्ण (भरे हुए) सकोरे रखें। तत्पश्चात् चन्दन से वासित, कंकण, स्वर्णमुद्रा, जल एवं वस्त्र से युक्त चार सोने या मिट्टी के कलश नंद्यावर्त्त के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy