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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 107 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान : पुत्रवान् चार या चार से अधिक सधवा स्त्रियाँ निरुंछन-विधि करें, अर्थात् जिनबिम्ब को बधाएं । उनको चाँदी (मुद्रा) का दान करें । पुनः बिम्ब के आगे प्रचुर मात्रा में मोदक एवं पकवान चढ़ाएं। फिर अलग से तीन सौ छत्तीस क्रयाणक की पोटली चढ़ाएं। श्रावकजन आरती करें। कुछ लोग उस समय मंगलदीपक भी करते हैं । फिर चैत्यवंदन करें । “ अधिवासनादेव की आराधना के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" ऐसा कहकर अन्नत्थ बोलकर गुरु एवं श्रावकजन कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें एवं कायोत्सर्ग पूर्ण कर, निम्न स्तुति बोलें - “विश्वाशेषसुवस्तुषु मंत्रैर्याजनमधिवसतिवसतौ । सेमामवतरतु श्रीजिनतनुमधिवासनादेवी ।।" या “पातालमन्तरिक्षं भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । सात्रावतरतु जैनीं प्रतिमामधिवासना देवी ।।" फिर श्रुतदेवी, शान्तिदेवता, अम्बादेवी, क्षेत्रदेवी, शासनदेवी एवं समस्त वैयावृत्तकर देवता के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति पूर्व की भाँति ही करें। पुनः शक्रस्तव बोलें तथा उसके बाद गुरु बैठकर बिम्ब के आगे यह विज्ञप्ति करें - " अनुग्रह करने वाले सिद्ध परमात्मा का स्वागत है, ये सिद्ध भगवान् ज्ञान के भण्डार हैं, आनन्द को देने वाले हैं एवं दूसरों पर अनुग्रह करने वाले हैं।" यह प्राणप्रतिष्ठा की विधि है। प्रायः बिम्ब की प्राणप्रतिष्ठा रात्रि में और स्थापना दिन में की जाती है। इसके विपरीत प्राणप्रतिष्ठा एवं स्थापना दोनों का लग्नसमय नजदीक ही हो, तो प्राणप्रतिष्ठा के कुछ समय बाद अन्य में प्रतिमा की प्रतिष्ठा (स्थापना) करें । उसकी विधि यह है शुभलग्न सर्वप्रथम निम्न छंद से शान्ति हेतु चारों दिशाओं में जलसहित बलि प्रदान करें। उसके बाद निम्न मंत्र बोलकर चैत्यवंदन करें “उन्मृष्टरिष्टदुष्टग्रहगतिदुःस्वप्नर्निमित्तादि । संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयतिशान्तेः।।" Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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