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आचारदिनकर (खण्ड-३) । प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान छंद - "सुधागिरः सुधाधाराः सुधादेहाः सुधाहृदः।
सुधाकरस्त्रियः सन्तु स्नात्रेस्मिन् प्रकिरत्सुधाः।।" मंत्र - “ॐ नमः श्रीचन्द्रेन्द्रदेवीभ्यः श्रीचन्द्रेन्द्रदेव्यः सायुधाः सवाहनाः.. शेष पूर्ववत्।"
सौधर्मशक्रेन्द्रदेवी की पूजा के लिए - 'छंद - "पौलोमीप्रमुखाः शक्रमहिष्यः कांचनत्विषः।
पीताम्बरा जिनार्चायां सन्तु संदृप्तकल्पनाः ।।" मंत्र - “ॐ नमः श्रीसौधर्मशक्रेन्द्रदेवीभ्यः श्रीसौधर्मशक्रेन्द्रदेव्यः सायुधाः सवाहनाः..... शेष पूर्ववत् ।"
ईशानेन्द्रदेवी की पूजा के लिए - छंद - “गौरीप्रभृतयो गौरकान्तयः कान्तसंगताः।
देव्य ईशाननाथस्य सन्तु सन्तापहानये।। मंत्र - “ऊँ नमः श्रीईशानेन्द्रदेवीभ्यः श्रीईशानेन्द्रदेव्यः सायुधाः सवाहनाः..... शेष पूर्ववत्।"
सनत्कुमार आदि इन्द्रों के देवियाँ नहीं होती हैं। देवियों की उत्पत्ति प्रथम एवं द्वितीय देवलोक में ही है, उसके पश्चात् तीसरे देवलोक से लेकर सहस्रार देवलोक तक देवियों का गमनागमन है, उसके आगे आणत, प्राणत, आरण और अच्युत - इन चार देवलोकों में उनका गमनागमन भी नहीं है, अतः सनत्कुमार आदि इन्द्रों के परिजनों की पूजा इन्द्र पूजा की सहचारिणी ही है। व्यंतर और ज्योतिष्क इन्द्रों के परिवार में त्रायत्रिंश एवं लोकपालदेव नहीं होते हैं। शुक्र आदि कल्पों के इन्द्रों के परिवार में किल्विषकदेव नहीं होते हैं। देवों में किल्विषक परम अधार्मिक होने के कारण पूजनीय नहीं हैं। इन्द्र के साथ उनके परिवार का साहचर्य होने से अखण्डित सूत्र पाठ में कोई दोष नहीं है, अन्य, अर्थात् ग्रैवेयक, अनुत्तरविमान के देव एवं जृम्भकदेव पार्श्वनाथ भगवान् की पूजा में पूजे जाते हैं।
तत्पश्चात् निम्न मंत्रपूर्वक सर्व इन्द्राणियों की सामूहिक पूजा करें -
“ऊँ ह्रीं नमः चतुःषष्टिसुरासुरेन्द्रदेवीभ्यः सम्यग्दर्शनवासिताभ्योऽनन्तशक्तिभ्यः श्री चतुःषष्टिसुरासुरेन्द्रदेव्यः सायुधाः सवाहनाः
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