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________________ ६२ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन कषाय और कर्मफल का अनुभाग (रसबंध) । प्रत्येक कर्म में कटु या मधुर फल देने की शक्ति होती है - इसका आधार भी कषाय है। पंचम कर्म-ग्रन्थ में उदाहरण के माध्यम से इसे समझाया गया है। एक ही प्रकार का घास यदि ऊँटनी खाये तो अत्यन्त गाढ़ा और चिकना दूध देती है। ऊँटनी के दूध से भैंस का दूध, भैंस के दूध से गाय का दूध और गाय के दूध से बकरी का दूध कम गाढ़ा और कम चिकना होता है। जैसे भिन्नभिन्न पशुओं के पेट में पहुँच कर घास भिन्न-भिन्न रस रूप परिणत हो गया, उसी प्रकार एक ही प्रकार के कर्म-परमाणु भिन्न-भिन्न जीवों के कषाय के आधार पर भिन्न-भिन्न फल देने की शक्ति प्राप्त करते हैं।। पंचम कर्म-ग्रन्थ में बताया है-३९ पर्वत रेखा सम अनन्तानुबन्धी कषाय से अत्यन्त तीव्र हलाहल समान कटु अनुभागबन्ध - बँधता है। पृथ्वीरेखा सम अप्रत्याख्यानी कषाय से तीव्रतम विष के जैसा कटु रस बन्ध होता है। बालुकारेखा सम प्रत्याख्यानी कषाय से बँधने वाला अनुभाग बन्ध कांजीर समान तीव्र कटु होता है। जलरेखा के समान संज्वलन कषाय से बँधने वाला रसबन्ध - नीम के समान तीव्र कटु होता है। ये अनुभाग-बन्ध अनन्तानुबन्धी सह चारों तीव्र कषायों के सद्भाव में बँधते हैं। मन्द-कषाय की परिणति में चार प्रकार के अनुभाग बन्ध इस प्रकार होते हैं-४० मन्द (गुड़ समान), मन्दतर (खाण्ड समान), मन्दतम (शर्करा जैसी), अत्यन्त मन्द (अमृतवत्)। ये समस्त भेद मुख्यतया बताए गए हैं। वैसे सूक्ष्म रूप में कषाय के असंख्य भेद हैं, तदनुसार असंख्य रस-बन्ध भी हैं। कषाय व नोकषायें मोहनीय सम्बन्धित प्रकृति-बन्ध कषाय-मोहनीय कर्मप्रकृति समय के परिपक्व होने पर क्रोध, मान, माया, और लोभ आदि भावों के उदय का कारण बनती है। नोकषाय मोहनीय कर्मप्रकृति काल परिपाक होने पर हास्य, रति आदि नोकषाय रूप भावों के उदय का कारण बनती है। ____ इन कर्म-प्रकृतियों का स्वरूप अनेक अपेक्षाओं से पंचम कर्म-ग्रन्थ में प्रतिपादित है।" ३८. पंचम कर्म-ग्रन्थ/ गा. ६३-६४ की व्याख्या३९. (अ) गो. क./ गा. १८४ (ब) पंचम कर्म-ग्रन्थ/ गा. ६५ ४०. (अ) गो. क./गा. १८४ (ब) पंचम कर्म-ग्रन्थ गा. ६५ ४१. पंचम कर्म-ग्रन्थ / गा. २ से १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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