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________________ ६० कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन ७. गोत्रकर्म बन्ध हेतु : मान-कषाय की मुख्यता गोत्र के दो प्रकार हैं- नीच और उच्च। मान के वशीभूत हो दूसरों की निन्दा, स्वयं की प्रशंसा, अन्य के गुण को छिपाना, गुण न होने पर भी स्वयं को गुणी कहना - नीच गोत्रकर्म बन्ध के हेतु हैं। ३५ ।। मरीचि ने कुल-मद करके नीच गोत्रकर्म का उपार्जन किया था। इनसे विपरीत भाव अर्थात् आत्मनिन्दा, पर-प्रशंसा इत्यादि उच्च गोत्रकर्म के कारण हैं। श्रीपाल महाराजा को अजितसेन राजर्षि ने अवधिज्ञान से बतायाहे राजन! आपकी आठ महारानियों ने पूर्व भव में आपकी एवं आपकी पत्नी श्रीमती की नवपदाराधना की खुले हृदय से प्रशंसा की थी। उस गुणानुमोदना के परिणामस्वरूप श्रीमती की सखियों ने यहाँ महारानी पद पाया है। ८. अन्तराय कर्मबन्ध हेतु : कषाय भोगोपभोग में विघ्न उपस्थित होना- अन्तराय कर्म का फल है। ३६ अन्तराय-कर्म पाँच प्रकार के हैं- (१) दान, (२) लाभ, (३) भोग, (४) उपभोग और (५) वीर्य। (१) दानान्तराय (लोभ-कषाय की मुख्यता)-स्वयं दान न देना, कोई देता हो तो उसे अच्छा न मानना, किसी को दान देने में विघ्न देना - इत्यादि से दानान्तराय कर्म का बन्ध होता है। इस कर्म के उदय से दान देने की मनोवृत्ति नहीं बनती। कपिला दासी से महाराजा श्रेणिक ने दान दिलाने का बहुतेरा प्रयास किया, किन्तु इसमें वे सफल नहीं हुए। (२) लाभान्तराय (लोभ-कषाय से बन्धन)- किसी के लाभ में बाधा देना, सौदा तुड़वा देना, सम्बन्ध समाप्त करवा देना आदि से लाभान्तराय कर्म का बन्ध होता है। इस कर्म के उदय से परिश्रम करने पर भी लाभ नहीं होता। ढंढण मुनि को छः महीने तक गवेषणा करने पर भी निर्दोष आहार नहीं मिला। इसका कारण सर्वज्ञ प्रभु नेमिनाथ ने बताया- 'पूर्व भव में कृषक के रूप में उन्होंने दिन-भर बैलों की जोड़ी से अथक परिश्रम लिया; किन्तु उन्हें आहार नहीं दिया।' (३) भोगान्तराय (लोभ-कषाय की प्रमुखता)- जिसका एक बार उपयोग किया जा सके - वह भोग है। किसी के खाने में बाधा देना, खाते समय बीच में उठा देना इत्यादि से भोगान्तराय-कर्म बन्धता है। ३५. तत्त्वार्थसूत्र/ अ. ६/ सू. २५ ३६. तत्त्वार्थसूत्र अ. ६/ सू. २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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