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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन संज्वलन माया- कभी-कभी साधना हेतु भी माया होती है। महाबल मुनि मित्र मुनियों से अधिक तप करने की भावना से उन्हें पारणा करने दिया एवं स्वयं अस्वस्थता का बहाना ले कर तप किया। मायापूर्वक किया गया यह तप तीर्थंकर नामकर्म के साथ-साथ स्त्रीवेद बन्ध का कारण बना। वे महाबल मुनि मल्ली तीर्थंकर हुए। अनन्तानुबन्धी लोभ-जिजीविषा स्वस्थता, संयोग प्राप्ति का लोभ अनन्तानुबन्धी लोभ है। जब देह को 'मैं' स्वरूप जीव मानता है, तब वह जीने की आकांक्षा, आरोग्य की वांछा, इष्ट पदार्थों के संयोग की कामना, प्रिय व्यक्तियों से सम्बन्ध बनाने की भावना रखता है। ४८ अप्रत्याख्यानी लोभ–सम्यग्दृष्टि की कामना जगत - कल्याण की होती है। साधक में धर्म-वात्सल्य उमड़ता है। तीर्थंकर बनने योग्य आत्मा इस अवस्था में उमड़ते वेगपूर्वक भावना करती है, 'सवि जीव करूँ शासन रसी' – जगत के समस्त जीवों का मैं कल्याण कर दूँ, उन्हें शाश्वत सुख दूँ । क्षायिक सम्यक्त्व वासुदेव श्रीकृष्ण ने अपने राज्य में घोषणा की थी, 'जो भी नगरवासी प्रभु नेमीनाथ के चरणों में संयम ग्रहण करे, उसके कुटुम्ब - पालन का उत्तरदायित्व मेरा है।' वे अपने निकटस्थ प्रत्येक व्यक्ति को प्रव्रज्या अंगीकार हेतु प्रेरणा देते थे। प्रत्याख्यानी लोभ-साधना - क्षेत्र में त्वरित गति से अग्रगामी होने की भावना, बारह व्रत ग्रहण कर प्रतिमाएँ धारण करने की इच्छा इस लोभ में होती है। संज्वलन लोभ - शीघ्रातिशीघ्र मुक्ति का आनन्द मिले, यह संज्वलन लोभ है । गज सुकुमाल ने नेमीनाथ प्रभु के चरणों में दीक्षा स्वीकार करके सर्वप्रथम यह प्रश्न किया था, 'प्रभो! मुझे जल्दी से जल्दी मुक्ति कैसे प्राप्त हो?" साधक क्रमशः समस्त कषायों का क्षय करता हुआ अकषाय / वीतराग अवस्था को उपलब्ध होता है। कषाय के दो भेद राग और द्वेष हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ की अपेक्षा कषाय चार प्रकार के हैं। अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी एवं संज्वलन के अनुसार कषाय के सोलह प्रकार हैं। इन्हें परस्पर गुणाकार करने पर कषाय के चौंसठ भेद भी होते हैं।' १३७ जो इस प्रकार हैं १३७. प्रथम कर्मग्रन्थ/ प्रभुदास बेचरदास पारेख संकलित कर्मग्रन्थ प्रदीप / पृ. १७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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