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________________ कषाय के भेद गुणानुमोदन किया; किन्तु एक मिथ्यात्वी अभव्य देव - संगम के मन में श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई। वह सोचने लगा- ‘इन्द्र महाराज व्यर्थ ही मानव की प्रशंसा करते हैं। मांस-मज्जा देहधारी यह मनुष्य एक क्षण में समता से चलित हो सकता है। मैं बता दूंगा- इस सारी देव-सभा को... महावीर को क्रोधित करना एक चुटकी का काम है।' अपना निर्णय देवराज को सुनाकर संगम धरती पर चला आया। छह महीने - कितनी क्रूरता की, दोषारोपण किए, असह्य वेदना दी; किन्तु संगम समता-पर्वत के शिखर को हिला नहीं पाया। ___ संगम की अनन्तानुबन्धी कषाय ने उससे एक महान् आत्मा को कष्ट देने का कार्य करा लिया। वह देवों द्वारा तिरस्कृत हुआ, शचीपति इन्द्र द्वारा देवविमान से बहिष्कृत हुआ और कषायरंजित मनोवृत्ति के कारण कलुषित हुआ। किन्तु फिर भी देवाधिदेव के प्रति श्रद्धा का दीप प्रज्ज्वलित नहीं हुआ। अनन्तानुबन्धी कषाय का काल श्वेताम्बर ग्रन्थों में २६ जीवन-पर्यन्त एवं दिगम्बर ग्रन्थों में संख्यात भव, असंख्यातभव, अनन्त भव पर्यन्त बताया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर परम्परा में यह काल-मर्यादा एक भवापेक्षा तथा दिगम्बर परम्परा में अनेक भवापेक्षा, यह प्रतिपादन है। अप्रत्याख्यानी कषाय जब सम्यक्त्व रूपी सूर्य उदित होता है, तब मिथ्यात्व रूपी अन्धकार विलीन हो जाता है। मिथ्यात्व की विदाई के साथ अज्ञान एवं अनन्तानुबन्धी कषाय भी अलविदा लेता है। गलत धारणाएँ टूटती हैं, मिथ्या मान्यताएँ समाप्त होती हैं। तत्त्व का सम्यक् स्वरूप दृष्टिपथ पर संचरित होने लगता है। आत्मप्रतीति रूप इस अवस्था में विपरीत दृष्टिकोण तो सम्यक् हो जाते हैं, किन्तु पूर्व संस्कारों की प्रबलता एवं वर्तमान की आसक्ति के कारण सत्य को जानते हुए भी आचरण में स्वीकृत नहीं हो पाता। अप्रत्याख्यानी कषाय का उदय व्रत ग्रहण में बाधक बनता है। आंशिक रूप में भी त्याग-विरतिपालन संभव नहीं हो पाता है। १२८ १२६. जावज्जीवाणुगामिणो... (विशेषा | गा. २९९२) १२७. (अ) जो सव्वेसि संखेज्जासंखेज्जाणतेहिं... (क. चू. | अ. ८ / गा. ३२ / सू. २३) (ब) गो. क. / गा. ४६-४७ १२८. यदुदयाद्देशविरतिं... कर्तुं न शक्नोति (सर्वार्थसिद्धि | अ. ८ / सू. ९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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