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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
२. इच्छा-इष्ट प्राप्ति की भावना। ३. मूर्छा-इच्छित वस्तु की अदम्य अभिलाषा। ४. कांक्षा-अप्राप्त की इच्छा। ५. गृद्धि-अपनी वस्तु में आसक्ति। ६. तृष्णा-अपने अधिकार की वस्तु को व्यय न करने की इच्छा। ७. भिध्या-एकाग्रतापूर्वक विषयों का अध्ययन या ध्यान। ८. आशंसन-स्नेहियों के प्रति शुभकामना। ९. प्रार्थन-अन्य से इष्ट अर्थ की याचना। १०. लालपन-दूसरों से बारम्बार प्रार्थना करना। ११. कामाशा-शब्द रूप आदि इन्द्रिय विषयों की आशा। १२. भोगाशा-गन्ध, रस आदि भोगों की कामना। १३. जीविताशा-जीने की इच्छा। १४. मरणाशा-निराशा में मरने की चाहना। १५. नन्दीराग-प्राप्त सम्पत्ति पर राग।
कसायपाहुड में बीस पर्यायें बतायी गयी हैं-११० काम, राग, निदान, छन्द, स्तव, प्रेय, दोष, स्नेह, अनुराग, आशा, इच्छा, मूर्छा, गृद्धि, साशता, प्रार्थना, लालसा, अविरति, तृष्णा, विद्या।
समवायांग एवं भगवतीसूत्र में दिए लोभ के पर्याय एवं कसायपाहुड में दिए पर्यायों में तीन-चार पर्यायों में साम्यता है- अन्य भिन्न हैं। कसायपाहुड में उल्लिखित पर्यायों की निम्न व्याख्या है
१. काम-स्त्री, पुत्र आदि की अभिलाषा। २. राग-विषयासक्ति। ३. निदान-जन्मान्तर सम्बन्धी संकल्प। ४. छन्द-मनोनुकूल वेशभूषा में विचारणा। ५. स्तव-विविध विषयों की अभिलाषा रूप चिन्तन। ६. प्रेय-प्रिय वस्तु प्राप्ति हेतु उत्कट भाव। ७. दोष-ईर्ष्याग्रस्त हो परिग्रह-बहुलता की इच्छा। ८. स्नेह-प्रिय वस्तु व्यक्ति के विचार में एकाग्रता।
९. अनुराग-स्नेहाधिक्यता। ११७. कामो राग णिदाणो.... (क. चू./ अ. ९/ गा. ८९)
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