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कषाय के भेद
(३) दर्प - गर्व में चूर होकर दुष्टता का परिचय देना, दर्प है। (४) स्तम्भ - झूठी अकड़ में तने रहना, झुकना नहीं स्तम्भ मान है। कसायपाहुड में अनर्गल या यद्वा तद्वा वचनालाप को स्तम्भ कहा गया है।
(५) आत्मोत्कर्ष - अपनी विद्वता, विभूति या ख्याति की उच्चता का
भाव !
( ६ ) गर्व - शक्ति का अहंकार ।
(७) परपरिवाद - पर - दोष कथन, निन्दा - परपरिवाद कहलाता है। (८) उत्कर्ष - अपनी ऋद्धि का प्रदर्शन 'उत्कर्ष मान' है।
( ९ ) अपकर्ष - अभिमानपूर्वक हिंसक प्रवृत्ति में संलग्न होना अथवा अन्य किसी को उस क्रिया में प्रवृत्त करना।
(१०) उन्नत - मानवश नीति का त्याग करके अनीति करना।
( ११ ) उन्नाम - वन्दनीय को वन्दन न करना, नमस्कार करने वाले को प्रति नमस्कार नहीं करना ।
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'भगवतीसूत्र' में मान का पर्याय दुर्नाम बताया गया है।' ( अ ) दुर्नाम - वन्दनीय को अभिमान, अनिच्छा एवं अविधि से वन्दन
करना ।
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कसा पाहुड सूत्र में मान के दस पर्याय उल्लिखित हैं" - मान, मद, दर्प स्तम्भ, उत्कर्ष, प्रकर्ष, समुत्कर्ष, आत्मोत्कर्ष, परिभव, उत्सिक्त। इन दस पर्यायों में चार पर्याय 'भगवतीसूत्र' में निर्दिष्ट पर्यायों से भिन्न हैं । जो निम्नलिखित हैं
(क) प्रकर्ष - अपनी विद्वता, विभूति अथवा ख्याति को प्रकट करना । (ख) समुत्कर्ष - उत्कर्ष और प्रकर्ष के लिए समुचित पुरुषार्थ करना । (ग) परिभव-दूसरे का तिरस्कार या अपमान ।
(घ) उत्सिक्त - आत्मोत्कर्ष से उद्धत या गर्वयुक्त होना ।
स्थानांग एवं प्रज्ञापना सूत्रों में मान की चार अवस्थाएँ दी गई हैं। उसकी उत्पत्ति के चार कारण बताए गए हैं, जो क्रोध की चार अवस्थाओं एवं क्रोधोत्पत्ति के कारणों के समान हैं। अतः यहाँ हम उनका अलग विवेचन नहीं करेंगे।
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भगवतीसूत्र / श. १२ / उ ५ / सू. ३ की वृत्ति
क. चू. / अ. ९ / गा. ८७ का हिन्दी अनुवाद
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