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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
(राक्षस) भ्रमण करने लगते हैं, उसी प्रकार विवेकरूपी सूर्य जब अहंकार रूपी अस्ताचल की ओट में लुप्त हो जाता है तो मोहान्धकार व्याप्त हो जाता है। राग-द्वेष रूपी निशाचर घूमने लगते हैं, चौर्य, व्यभिचार आदि पाप कर्म पनपने लगते हैं। प्राणी दृष्टिहीन होकर स्वच्छन्दतापूर्वक उन्मार्ग में प्रवर्तने लगते हैं।
मोक्षमार्ग प्रकाशक में अभिमानी का स्वरूप बताया है कि 'अभिमानी व्यक्ति स्वयं को उच्च एवं अन्य को निम्न प्रदर्शित करने की इच्छा रखता है। परिणामस्वरूप वह अन्य की निन्दा करता है, स्वप्रशंसा हेतु विवाहादि कार्यों में शक्ति उपरान्त व्यय करता है । यदि उसकी इच्छा पूर्ण न हो तो अत्यन्त सन्तप्त होता है। सन्ताप की तीव्रता में कभी-कभी विष-भक्षण, अग्नि-स्नान आदि से आत्मघात भी कर लेता है। ___ मान कषाय जीवन को गहरे पतन-गर्त में धकेलने वाली एक मनोवृत्ति है। मान अनेक रूपों में प्रकट होता है, अत: मान के समानार्थक पर्यायों का वर्णन आगमों में प्राप्त होता है।
समवायांग ५ एवं भगवती सूत्रों में मान के ग्यारह पर्याय उल्लिखित हैं : (१) मान, (२) मद, (३) दर्प, (४) स्तम्भ, (५) आत्मोत्कर्ष, (६) गर्व, (७) परपरिवाद, (८) उत्कर्ष, (९) अपकर्ष, (१०) उन्नत, (११) उन्नाम।
श्री अभयदेवसूरि द्वारा भगवतीसूत्र के वृत्ति-अनुवाद में इन ग्यारह पर्यायों का अर्थ-निरूपण निम्न प्रकारेण किया गया है
१. मान-जिस कर्म के उदय से मान-भाव उत्पन्न होता है - वह कर्म ही मान है।६७
२. मद-शक्ति का अहंकार मद कहलाता है।
समवायांगसूत्र में मद के आठ प्रकार बताये गये हैं ६..- (क) जाति-मद, (ख) कुल-मद (ग) रूप-मद (घ) बल-मद (च) श्रुत-मद (छ) तप-मद (ज) लाभ-मद (झ) ऐश्वर्य-मद।
(क) जाति-मद- मूल में आत्मा की कोई जाति नहीं है। मनुष्यों में वर्णव्यवस्था (जातियाँ) कर्म के आधार पर निर्मित हुई है। ये जातियाँ चार हैं६४. मोक्षमार्ग प्रकाशक / पं. टोडरमल | पृ. ५३ ६५. माणे मदे दप्पे थंभे (समवाओ/समवाय ५२ / सूत्र १) ६६. भगवती सूत्र / श. १२ / उ. ५ / सू. ३ की वृत्ति ६७. भगवतीसूत्र | श. १२/ उ. ५ / सू. ३ की वृत्ति ६८. अट्ठ मयट्णणा पण्णत्ता, तं जहा - जातिमए, कुलमए, बलमए, रूवमए, तवमए,
सुयमए, लाभमए इस्सरियमए।' (समवाओ/समवाय ८ / सू. १)
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