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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन (ब) पर-प्रतिष्ठित (पर-निमित्त)- जब अन्य कोई क्रोधोत्पत्ति में कारणभूत हो- जैसे कर्मचारी के हाथ से घड़ी गिरने पर मालिक को क्रोध आया। (स) तदुभय-प्रतिष्ठित (उभय-निमित्त)- जिस क्रोध में कारण स्व तथा पर दोनों हों। जैसे कर्मचारी के हाथ से गिलास लेते-लेते छूट गया, गिर गया, टूट गया। कर्मचारी पर क्रोध इसलिए आया- मैंने ठीक से पकड़ा नहीं था और तुमने छोड़ दिया। अपने प्रति क्रोध इसलिए कि इतने गर्म दूध का गिलास हाथ में क्यों लेने लगा? मेज पर क्यों नहीं रखवा दिया। '' " (द) अप्रतिष्ठित-बाह्य निमित्त नहीं होने पर भी स्वयमेव चित्त क्षुब्ध होता रहता है, उद्धिग्नता-चंचलता बनी रहती है। यह स्थिति अन्तरंग में क्रोधमोहनीय-कर्म के उदय से बनती है। स्थानांगसूत्र में अन्यापेक्षा भी क्रोधोत्पत्ति के चार कारण बताए गए हैं-५८ (क) क्षेत्र-खेत, भूमि आदि के निमित्त से क्रोध करना। (ख) वस्तु-घर, दुकान, फर्नीचर आदि के कारण से क्रोध आना। (ग) शरीर-कुरूपता, रुग्णता आदि कारण से क्षुब्ध होना। (घ) उपाधि-सामान्य साधन-सामग्री निमित्त कलह करना। स्थानांगसूत्र में क्रोधोत्पत्ति के दस कारण बताये गये हैं। ५९ जो निम्नोक्त हैं १. मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण करने वाले के प्रति क्रोध। २. अमनोज्ञ शब्दादि विषयों का संयोग कराने वाले के प्रति क्रोध। ३. इष्ट विषयों का अपहरण दूसरों के द्वारा कराने वाले के प्रति क्रोध। ४. अनिष्ट विषयों का संयोग दूसरों के द्वारा कराने वाले के प्रति क्रोध। ५. प्रिय संयोगों के वियोग/ अपहरण की संभावना जिसके द्वारा है- उसके प्रति क्रोध। ६. अप्रिय प्राणी/ पदार्थों की प्राप्ति की आशंका जिसके द्वारा है- उसके प्रति क्रोध। ५८. चउहि ठाणेहिं कोधुप्पती सिता – तं जहा खेतं पडुच्चा, वत्थु....।' (ठाणं/ स्थान ४/ उ. १/ सू. ८०) ५९. दसहि ठाणेहिं कोधुप्पती सिया - तं जहा - मणुण्णाई।" (ठाणं/स्थान १०/ सू. ६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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