SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन - आचारांगसूत्र में विषयों को संसार कहा है। २९ क्रोधोत्पत्ति में विषय परम्परागत कारण है। क्रोध से सम्बन्धित विवेचना के अन्तर्गत बौद्ध ग्रन्थ (अंगुत्तरनिकाय) में क्रोधी मनुष्य की उपमा सर्प से दी गई है। तथागत बुद्ध ने चार प्रकार के सर्प बताते हुए चार प्रकार के मनुष्यों का कथन किया है। सर्प के चार प्रकार(१) विषैला, किन्तु घोर विषैला नहीं। (२) घोर विषैला, विषैला नहीं। (३) विषैला, घोर विषैला। (४) न विषैला, न घोर विषैला। इसी प्रकार मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं(१) शीघ्र क्रोधित, किन्तु क्रोध का काल लम्बा नहीं। (२) शीघ्र क्रोधित नहीं, किन्तु आने पर बहुत देर तक क्रोध। (३) शीघ्र क्रोधित तथा क्रोध की अवधि भी लम्बी। (४) न शीघ्र क्रोधित, न ही अधिक समय तक क्रोध। इतिवृत्तक' में महात्मा बुद्ध ने भिक्षुओं को उपदेश देते हुए कहा है-जिस क्रोध से क्रोधी दुर्गति को प्राप्त होते हैं, उस क्रोध को योगी छोड़ देते हैं, अतः फिर कभी इस संसार में नहीं आते। इसलिए क्रोध को जड़ से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए। संयुत्तनिकाय२ में दो-तीन ऐसे प्रसंग प्राप्त होते हैं, जिनमें तथागत को क्रोध करने का निमित्त प्राप्त हुआ; किन्तु उन्होंने क्रोध नहीं किया। यथाभारद्वाज गोत्रीय व्यक्ति क्रुद्ध होकर तथागत के पास आया और प्रश्न किया किसका नाश कर सुख से सोता है? किसका नाश कर शोक नहीं करता? किस एक धर्म का वध करना-हे गौतम! आपको रुचता है? तथागत बुद्ध ने प्रत्युत्तर दिया २९. आयारो अ. १/उ. ५/सू. ९३ ३०. अंगुत्तर निकाय/द्वितीय भाग/पृ. १०८-१०९ ३१. इतिवृत्तक/पहला निपात/पहला वर्ग/पृ. २ । ३२. संयुत निकाय/पहला भाग/अनु. - भिक्षु जगदीश काश्यप, भिक्षु धर्मरक्षित/ संयुत ७, पृष्ठ १२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy