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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन
__ कसायपाहुड में शब्दादि नयापेक्षा चारों कषाय को द्वेष-रूप बताया गया है क्योंकि ये संसार परिभ्रमण के कारण हैं। मात्र लोभ किंचित् राग, किंचित् द्वेष- रूप है। जब धर्म-साधना का लोभ हो तब वह राग-रूप है; क्योंकि वह उज्ज्वल भविष्य निर्माता है, किन्तु सांसारिक विषयों का लोभ, द्वेष-रूप है; क्योंकि वह भव-भ्रमण का कारण है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर राग-द्वेष कषाय के भेद निरूपित किए गए हैं। किन्तु समयसार में राग-द्वेष एवं कषाय – दोनों में अन्तर किया गया है।
___ 'समयसार'२१ में राग-द्वेष को चिदाभास अर्थात् चैतन्य का विकार कहा गया है- उसका आधार आसक्ति है तथा कषाय को कर्म का कारण होने के कारण पुद्गल परिणाम बताया गया है। कषाय की उत्पत्ति मोहनीय-कर्म से होने के कारण वह पुद्गल का विकार है। यह अपेक्षात्मक एक कथन है।
निष्कर्षतः आसक्ति मूल है, राग-द्वेष शाखाएँ तथा कषाय उपशाखाएँ हैं।
प्रशमरति ग्रन्थानुसार कषाय के दो भेद राग एवं द्वेष हैं; किन्तु सामान्यतः कषाय के चार भेद बताये गये हैं।
समवायांगसूत्र,२२ विशेषावश्यकभाष्य२३ आदि में कषाय के चार प्रकार निम्नलिखित हैं१. क्रोध, २. मान, ३. माया; और ४. लोभ।
(१) क्रोध क्रोध एक ऐसा मनोविकार है, जिसके उत्पन्न होने पर शारीरिक, मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं, जैसे- चेहरे का तमतमाना, आँखें लाल होना, भृकुटि चढ़ाना, होंठ फड़फड़ाना, नथुने फूलना, जिह्वा लड़खड़ाना, वाक्य व्यवस्था स्खलित होना, शरीर असन्तुलित होना इत्यादि।
योगशास्त्र" में आचार्य हेमचन्द्र ने क्रोध का
२०. क. चू./ अ. १/ गा. २१/ सू. ९१ २१. समयसार/ गा. १६४-१६५ की तात्पर्यवृत्ति २२. समवाओ| समवाय ४/ सूत्र-१ २३. विशेषा./ गा. २९८५ २४. योगशास्त्र/ प्रकाश ४/ गा. ९
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