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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन इधर नगर में हाहाकार मच गया। प्रतिदिन एक नरहत्या। आश्चर्य युवराज्ञी ऋषिदत्ता के आसपास प्रतिदिन माँस के टुकड़े और चेहरे पर खून के दाग। योगिनी ने राजा हेमरथ को भ्रमित कर दिया- यह तुम्हारी पुत्रवधू, कुलीन नारी के वेश में राक्षसी है। ऋषिदत्ता को शूली का दंड प्राप्त हुआ; पर चाण्डाल की दया से भागने का मौका मिल गया। पुनः रुक्मिणी से विवाह का प्रस्ताव आने पर कुमार को बारात ले कर जाना पड़ा। प्रथम रात्रि- रुक्मिणी ने मुस्करा कर पूछा- नाथ! वह ऋषिदत्ता ऐसी कैसी सुन्दरी थी कि आप बारात ले कर आते-आते पुनः लौट गए। कुमार की आँखों में नमी छा गई- 'रुक्मिणी! वह अनिंद्य सुन्दरी ही नहीं भोली-भाली, मृदु स्वभावी, गुणों से दूसरों के हृदय पर साम्राज्य स्थापित करने में निपुण रमणी थी।' रुक्मिणी विद्रूपता से हँस पड़ी- 'स्वामिन्! आप भले कितने भी गुण गाएँ; पर मैंने अपने मार्ग का कण्टक साफ कर दिया है। उस योगिनी को भेजने वाली मैं ही थी!' धक् रह गया राजकुमार! 'अहो! तुमने ईर्ष्यावश एक निरपराध को मृत्यु की वेदी पर चढ़ा दिया। अब मैं भी अग्नि-स्नान करके मृत्यु-वरण करता हूँ।' ईर्ष्या ने कितने घरों को बरबाद किया है। झूठा कलंक लगाना, कलह करना, द्वेष आदि ईर्ष्या की ही प्रतिध्वनियाँ हैं। ८. वैर- अन्तरंग में क्रोध का स्थायित्व लेना वैर है। रामचन्द्र शुक्ल ने वैर मनोवृत्ति का चित्रण किया है। ११ 'क्रोध सब्जी है, वैर अचार-मुरब्बा है।' जैसे सब्जी बनने के बाद उसी दिन उसका उपयोग कर बर्तन साफ कर दिया जाता है, वैसे ही क्रोध आता है, मनोमस्तिष्क पर छा जाता है, व्यक्ति गरजता है, बरसता है और शान्त हो जाता है। अचार/मुरब्बे के उपयोग का समय लम्बा होता है। काँच की बरनी में भरा मुरब्बा समय-समय परं निकाला जाता है और स्वाद लिया जाता है। वैसे ही वैर बँधने के बाद उस प्रसंग, शब्द, घटना की स्मृति मनोमस्तिष्क की परतों में गहरे तक पैठ जाती है और समय-समय पर निमित्त प्रसंग मिलने पर वह शब्द, वह घटना चलचित्र की भाँति स्मृति-पटल पर उभरने लगती है। व्यक्ति उस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए तड़पने लगता है। यह प्रतिशोध भावना- वैर परम्परा विवेक न आने पर जन्मजन्मान्तर चलती रहती है। ११. चिन्तामणिभाग-२/ पृ. १३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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