________________
कषाय: एक तुलनात्मक अध्ययन २
( क ) एक व्यक्ति कषाय, ( ख ) एक वस्तु कषाय, ( ग ) अनेक व्यक्ति कषाय, (घ) अनेक वस्तु कषाय, (च) एक व्यक्ति और एक वस्तु कषाय, (छ) अनेक व्यक्ति और एक वस्तु कषाय, (ज) एक व्यक्ति और अनेक वस्तु कषाय, ( झ ) अनेक व्यक्ति और अनेक वस्तु कषाय ।
इन आठ विकल्पों को हम उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करेंगे।
( ५ ) प्रत्यय कषाय - कषाय- उत्पत्ति में दो कारण होते हैं - बाह्य व अन्तरंग । बाह्य निमित्त वस्तु, व्यक्ति, क्षेत्र, काल, घटना, परिस्थिति आदि होते हैं तथा अन्तरंग निमित्त मोहनीय कर्म का उदय है
1
विशेषावश्यक " एवं कसायपाहुड" में अन्तरंग निमित्त रूप मोहनीय कर्म को प्रत्यय - कषाय कहा गया है।
उत्पत्ति-कषाय और प्रत्यय - कषाय में अन्तर - सामान्य दृष्टि से दोनों में अन्तर प्रतीत नहीं होता; किन्तु सूक्ष्मतया दोनों भिन्न हैं। उत्पत्ति - काय बाह्य कारणभूत व्यक्ति और वस्तुओं को कषाय- उत्पत्ति में कारण मानता है तथा प्रत्यय-काय अन्तरंग कारणरूप कर्म को कषाय - उत्पत्ति का निमित्त मानता है।
(६) आदेश- कषाय - 'विशेषावश्यक'"" के अनुसार - अन्तरंग में क्रोधादि भाव न होने पर भी क्रोधी, अभिमानी आदि का अभिनय करना, आदेश- कषाय है । जैसे - मन में क्रोध न होने पर भी कभी-कभी माता कठोर शब्द बोल कर उदण्ड बच्चे को शान्त बिठा देती है। एक सर्प को संन्यासी ने शिक्षा देते हुए कहा, 'तुम किसी को डँसना मत, लेकिन यदि कोई तुम्हें छेड़े तो फुफकार से डरा देना।' यह आदेश - कषाय है ।
'कसायपाहुड' में चित्रलिखित रोषयुक्त, भृकुटि चढ़ाए हुए व्यक्ति की आकृति को आदेश-कषाय कहा गया है। यह परिभाषा स्थापना - कषाय के समान होने से उपयुक्त प्रतीत नहीं होती ।
(७) रस- कषाय - कसैले रसवाला द्रव्य रस- कषाय कहलाता है, जैसे हरीतकी, सर्ज आदि वनस्पति ।
२०
१६. होइ कसायाणं बंधकारणं... (विशेषा. / गा. २९८३ )
१७. पच्चयकसाओ णाम... ( क. चू. / अ. १ / गा. १३-१४ / सू. ४५ )
१८. आएसओ कसाओ
(विशेषा. / गा. २९८४ )
१९. आदेश कसाएण जहा चित्रकम्मे लिहि दो कोहो ...
( क. चू. / अ. १ / गा. १३-१४ / सू. ५९ )
२०. रसकसाओ नाम कसायरसं दव्वं (क. चू. / अ. १ / गा. १३-१४ / सू. ६५ )
Jain Education International
***
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org