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________________ स्व-कथ्य चित्तरूपी सागर में विविध भाव-तरंगें उठती रहती हैं; कभी हर्ष, कभी शोक, कभी काम, कभी क्रोध, कभी भय तो कभी घृणा। कषाय के बहुविध रूप हमारे मनरूपी रंगमंच पर नृत्य करते रहते हैं। मूल रंग पाँच हैं : सफेद, काला, पीला, नीला, लाल। विज्ञान ने यह संख्या तीन मानी है : नीला, लाल, पीला। इन रंगों से अनेक रंगों की रचना संभव है। उसी प्रकार मूलतः कषाय चार हैं : क्रोध, मान, माया, लोभ। झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट, ईर्ष्या, द्वेष, मद, दर्प, छल-प्रपंच आदि कषाय की विविध अवस्थाएँ हैं। क्रोध स्व-परदाहक भयंकर अग्नि है। जिस प्रकार दियासलाई पहले स्वयं जलती है, फिर दूसरों को जलाती है; ठीक उसी प्रकार क्रोधी पहले स्वयं अशान्त होता है, फिर दूसरों पर कहर बरसाता है, गज़ब ढाता है। क्रोधी व्यक्ति - गिरता हुआ वह मकान है, जो स्वयं तो गिरता ही है; पर जिस पर गिरता है, उसे भी चोट पहुँचाता है। क्रोध दुश्मन पैदा करता है, मान आत्मीयता से वंचित करता है, माया विश्वास के टुकड़े-टुकड़े कर डालती है और लोभ अनर्थों की जड़ है। इन चारों चित्तवृत्तियों को कषाय संज्ञा दी गई है। इस कषाय के फलस्वरूप परिवार में अशान्ति, कलह, मनोमालिन्य का वातावरण बनता है। समाज में सामाजिकता नहीं रहती। व्यापार में प्रामाणिकता नहीं होती। राष्ट्र में गृहयुद्ध, विद्रोह, संघर्ष, गन्दी राजनीति पनपती है। काषायिक परिणति का परिणाम विश्वयुद्ध - विभीषिका के रूप में दिखाई देता है। अधिकारलिप्सा से विरोधी देश पर अणुबम का प्रयोग, नरसंहार तीव्रतम कषाय की ही परिणति है। जहाँ कषाय है, वहाँ कर्मबन्ध है; जहाँ कर्मबन्ध है, वहाँ संसार-परिभ्रमण है; जहाँ संसार-परिभ्रमण है, वहाँ दुःख, दुःख, भयंकर दु:ख है। मुक्ति-पथ पर चलने के लिए धर्मरथ के दो पहिये हैं- कषाय-मन्दता और आत्म-रमणता! कषाय के उन्मूलन के लिए उसके स्वरूप का ज्ञान अत्यावश्यक है! अतः सहज ही ऐसे महत्त्वपूर्ण, उपयोगी और आत्मोपकारक विषय पर शोध की इच्छा जागृत हुई। अहिल्या विश्वविद्यालय (इन्दौर) से डॉ. धोलकिया के उदार निर्देशन में कार्य प्रारम्भ हुआ। विद्वद्वर्य डॉ. सागरमल जैन एवं डॉ. श्री नेमीचन्द जैन (इन्दौर) का अमूल्य समय और सहयोग समय-समय पर मिलता रहा। एक विचार साकार हुआ। - प्रत्यक्षतः परिश्रम भले मेरा दिखाई देता हो, किन्तु वस्तुतः यह आत्मज्ञानी साधिका करुणामूर्ति गुरुवर्या श्री विचक्षणश्रीजी महाराज साहब के परोक्ष शुभाशीर्वाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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