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कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन २६
जायेगी। इसी प्रकार व्यक्ति में वासनात्मक आवेगों (कषायों) की जितनी अधिकता होगी, नैतिक दृष्टि से उसका व्यक्तित्व उतना ही निम्न स्तरीय होगा। आवेगों (मनोवृत्तियों) की तीव्रता और उनकी अशुभता दोनों ही व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। वस्तुतः आवेगों में जितनी अधिक तीव्रता होगी, उतनी व्यक्तित्व में अस्थिरता होगी और व्यक्तित्व में जितनी अधिक अस्थिरता होगी उतनी ही अनैतिकता होगी। आवेगात्मक अस्थिरता अनैतिकता की जननी है। इस प्रकार आवेगात्मकता, नैतिकता और व्यक्तित्व तीनों ही एक-दूसरे से जुड़े हैं। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि व्यक्ति के सन्दर्भ में न केवल आवेगों की तीव्रता पर विचार करना चाहिए वरन् उनकी प्रशस्तता और अप्रशस्तता पर भी विचार करना आवश्यक है। प्राचीन काल से ही व्यक्ति के आवेगों तथा मनोभावों के शुभत्व एवं अशुभत्व का सम्बन्ध हमारे व्यक्तित्व से जोड़ा गया है। आचार दर्शन में व्यक्तित्व के वर्गीकरण या श्रेणी-विभाजन का आधार व्यक्ति की प्रशस्त और अप्रशस्त मनोवृत्तियाँ ही हैं।
साध्वीश्री हेमप्रज्ञाश्री जी के इस शोधकार्य के विषय चयन से लेकर उसकी पूर्णता तक की समस्त प्रक्रिया का मैं साक्षी रहा हैं। साध्वीश्री जी ने अत्यन्त श्रमपूर्वक मूल आगम ग्रन्थों का अध्ययन एवं अवगाहन कर प्रस्तुत शोध निबन्ध को तैयार किया था। इसी शोध-प्रबन्ध पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर द्वारा उन्हें पी-एच.डी. की उपाधि भी प्रदान की गई। प्रस्तुत कृति उसी शोधप्रबन्ध का संक्षिप्त रूप है। अतः पी-एच.डी. के शोध-प्रबन्ध में जो अनावश्यक विस्तार होता है, उससे यह कृति मुक्त है। संक्षिप्त होते हुए भी यह कृति कषाय सिद्धान्त के सारभूत सभी पक्षों को अपने में समाहित करती है। अपनी ही कृति का पुनर्लेखन कर उसे संक्षिप्त कर पाना एक कठिन एवं नीरस कार्य है, इसमें श्रम के साथ-साथ साहस और सूक्ष्म दृष्टि की भी आवश्यकता होती है, अन्यथा अपेक्षित पक्षों के छूट जाने का भय रहता है। पूज्या साध्वी हेमप्रज्ञाजी इस श्रम और साहस के लिए निश्चय ही साधुवाद की पात्र हैं। मुझे विश्वास है कि अपनी सहज संप्रेषणीयता के कारण प्रस्तुत कृति न केवल विद्वत् जगत् में अपितु जन साधारण में भी अपना स्थान बना पाने में सफल होगी।
पूज्या साध्वीश्री मणिप्रभाश्री जी म.सा. का आदेश एवं साध्वीश्री हेमप्रज्ञाश्री जी का आग्रह प्रस्तुत कृति की भूमिका लिखने का निमित्त बना और इस माध्यम से मुझे इस कृति के संक्षिप्त स्वरूप के अवलोकन का पुनः एक
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