SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ कषाय: एक तुलनात्मक अध्ययन इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र में आत्मा के अनेक सहस्र शत्रु बताए गए हैं। इन शत्रुओं पर जिसने विजय प्राप्त कर ली, उसने कर्मों पर विजय प्राप्त कर ली और जो कर्म-विजेता बन गया, वह जन्म-मरण दुःख - विजेता बन गया । संसार के जन्म-मरण रूप दुःखों से छुटकारा पा लेना ही मुक्ति है। मुक्ति का आशय है - कर्ममुक्ति, राग-द्वेष से मुक्ति, संसार के आवर्त और तज्जन्य दुःखों से मुक्ति । आचार्य उमास्वाति ने कर्मबन्ध के हेतुओं का अभाव और निर्जरा से कर्मक्षय बताया है। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय मुक्ति है। १८९ मोह / कषाय का क्षय भाव मोक्ष है एवं कर्म-क्षय द्रव्यमोक्ष है। भाव-मोक्ष के बिना द्रव्य - मोक्ष संभव नहीं है । इसीलिए आचारांग में कषाय को भाव-संसार की संज्ञा दी गई है। १९० कषाय, राग-द्वेष से मुक्तात्मा वीतराग कहलाती है। कषायरूपी शत्रुओं का हनन करने के कारण शुद्धात्मा को अरिहन्त सम्बोधन दिया गया है। परमात्मा न सृष्टिकर्ता है, न सृष्टिपालक है और न ही सृष्टिसंहारक है, क्योंकि उसमें इच्छा मात्र का अभाव है । वह न अनुग्रह करता है, न निग्रह करता है; क्योंकि वह राग-द्वेषादि से रहित है। ऐसे शुद्धात्मा को ही ईश्वर के रूप में नमस्कार किया गया है, वह भले किसी भी नाम से पहचाना जाता हो । आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने कहा है 'भवबीजांकुर जनना, रागाद्या क्षयमुपगतायस्य, ब्रह्मा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तमै' १९९ जिसने भव-परम्परा के बीज-रूप राग-द्वेषादि का क्षय कर दिया, वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो अथवा जिन हो; उसे नमस्कार है। आचार्य हरिभद्र सूरि ने इसी आशय से कहा है, ' भले १९२ 'नासाम्बरत्वे, न सिताम्बरत्वे, न तर्कवादे न च तत्त्ववादे न पक्षसेवाश्रयेण मुक्ति, कषायमुक्ति किल मुक्तिरेव । ' न दिगम्बर, न श्वेताम्बर, न तर्कवाद, न तत्त्ववाद पक्ष की सेवा से मुक्ति है, वस्तुतः कषायमुक्ति ही मुक्ति है। १८९. तत्त्वार्थ/१०/२-३ १९०. आचारांगसूत्र / १ / २ / टीका १९१. सूक्तिमुक्तावली /गा. ८२ १९२. सम्बोध सप्तततिका / गा. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy