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________________ कषाय: एक तुलनात्मक अध्ययन आत्म-दृष्टि उपलब्ध होने पर साधक स्वयं को समस्त संयोगों से हटाकर त्याग मार्ग पर अग्रसर होता है एवं आत्मा को तप से भावित करता है। प्रतिकूलता में कषायोदय न हो, समताभाव अखण्डित रहे, अकषाय भाव से स्थिरता रहे - यही साधक का प्रयास होता है। शरीर आदि से सम्बन्धित आसक्तियों को तोड़ना तप का उद्देश्य होता है। आचारांग आदि ग्रन्थों में तप के बारह प्रकार बताये गये हैं । १४३ परवर्ती ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र आदि में बाह्य एवं आभ्यन्तर रूप में तप दो प्रकार के बताये गये हैं । १४४ दोनों के छः-छः भेद हैं- ( १ ) अनशन ( २ ) अवमौदर्य या ऊनोदरी (३) वृत्तिपरिसंख्यान या भिक्षाचरी (४) रस परित्याग ( ५ ) कायक्लेश (६) संलीनता या विविक्तशय्यासन । आभ्यन्तर तप के छः भेद हैं- ( १ ) प्रायश्चित (२) विनय ( ३ ) वैयावृत्य ( ४ ) स्वाध्याय ( ५ ) ध्यान ( ६ ) कायोत्सर्ग। जिस तप में बाह्य / शारीरिक प्रतिकूलता का आधार लेकर कषाय संज्ञा को शिथिल किया जाता है, वह बाह्य तप है। वस्तुतः इच्छा का निरोध तप है। राग-भाव के बंधनों को तोड़ने के लिए, पदार्थों में इष्टानिष्ट कल्पना को समाप्त करने के लिए बाह्य तप का आलम्बन लिया जाता है। १२२ (१) अनशन / अणाहार : कषाय का परिहार 'न अशनं इति' अनशन अर्थात् समस्त आहारों का त्याग। वह अल्पकालिक तथा यावत्कथिक रूप से दो प्रकार का है। १४५ भोजन शरीर की आवश्यकता है; किन्तु यदि कुछ समय शरीर को आहार न दिया जाए तो विशेष हानि नहीं होती है। भोजन की जितनी आवश्यकता शरीर को होती है, उससे अधिक आवश्यकता का अनुभव होना राग-भाव के कारण होता है। समय पर आहार न देने से देह - राग की चंचलता मन की परतों पर उभरने लगती हैं और उसी चंचलता को साधक शान्त करके कषाय को शिथिल करता है। अनशन का प्रचलित नाम उपवास है। उपवास अर्थात् आत्मा के समीप वास करना । आत्म-निकटता में राग-भाव का विशेष उदय न होने पर भोजन ग्रहण की लालसा जाग्रत नहीं होती । शरीर की शिथिलता का अहसास होने पर साधक आहार ग्रहण करता है। भगवान् महावीर ने नन्दन ऋषि के जीवन में १४३. आचारांग /१/५/४ १४४. (अ) तत्त्वार्थ/९/१९-२० ( ब ) उत्तराध्ययनसूत्र / अ. ३० /गा. ७ १४५. आचारांग १/५/४, १/८/५-६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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