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________________ कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन महावीर ने प्रायश्चित करने के लिए कहा। सहसत्कार वचन में आंशिक असत्य भी मृषावाद की कोटि में आता है। आनन्द श्रावक से क्षमा-याचना करने की प्रेरणा प्रभु महावीर ने गौतम गणधर को दी । ५९ जब आनन्द श्रावक ने अपने अवधिज्ञान के क्षेत्र की सीमा के विषय में बताया, तब गौतम ने कहा था- 'नहीं, आनन्द श्रावक; एक श्रावक का अवधिज्ञान इतना विस्तीर्ण नहीं हो सकता । ' १०२ भाषा सत्य हो, हितकारी हो, प्रिय हो, मधुर हो । किसी के प्राणों पर संकट आता हो, तो उस समय साधक को सत्य वचन भी उच्चारित नहीं करना चाहिए | मेतार्य मुनि ने क्रौंच पक्षी को स्वर्णयव कण चुगते देख लिया था; किन्तु सुनार के पूछने पर वे मौन रहे । " सुनार ने कुद्ध होकर मेतार्य मुनि को गीले चमड़े से बाँधकर धूप में खड़ा कर दिया - नसें, हड्डियाँ आदि चमड़े के सूखने के साथ चरमराने लगी। अपने प्राण विसर्जित कर दिए पर क्रौंच पक्षी के प्राणों पर करूणाकर मुनि ने मुँह नहीं खोला। जहाँ करुणा नहीं कषाय होता है, वहाँ जानबूझकर अन्य को हैरान-परेशान कर दिया जाता है । भृषावाद का आलम्बन लेकर अपने कषाय को अज्ञानी पुष्ट करता है। (३) अदत्तादान - अ + दत्त + आदान बिना दिया हुआ लेना । वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना वस्तु ग्रहण करना अदत्तादान है । " जब आसक्ति तीव्र हो, लोभ / आकांक्षा प्रबल हो, तब चोरी जैसा कुकृत्य होता है। पैर में काँटा चुभ जाने पर या हाथ की अंगुली कट जाने पर जैसे प्रतिसमय वेदना होती है; वैसे ही चोरी करने पर भय, व्याकुलता, अशान्ति का वेदन होता है। चौर्यकर्म के परिणामस्वरूप जीव त्रिकाल में दुःख प्राप्त करता है। चोरी से पूर्व योजना बनाने में आसक्ति, तृष्णा का महादुःख, चोरी करते समय भय, कम्पन, बेचेनी, घबराहट एवं चोरी के पश्चात् इहलोक में फाँसी, कैद, अंगोपांग छेदन तथा परलोक में नीच कुल, पशु-पक्षी जीवन, नारकीय जीवन आदि में दुःख प्राप्त करता है। यह तीव्र काषायिक वृत्ति का ही परिणाम है। (४) मैथुन - मैथुन अर्थात् मिथुन प्रवृत्ति । 'मिथुन' शब्द सामान्यतः स्त्रीपुरुष के जोड़े का वाचक है। अब्रह्मसेवन / विषयसेवन, वेदमोहनीय कषायोदय से उत्पन्न प्रवृत्ति है । जन्म-जन्मान्तरों के स्पर्शेन्द्रिय के संस्कार जब उभरते हैं, श्री कल्पसूत्र / महावीर चरित्र ६०. योगशास्त्र / अ. १ / टीका ६१. तत्त्वार्थ / अ. ७ / सू. १० ५९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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