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________________ कषाय और कर्म १०१ गया है एवं किसी के प्राण हनन करना द्रव्यहिंसा है।५४ आचार्य अमृतचन्दजी ने भाव-भूमिका के आधार पर हिंसा-अहिंसा को परिभाषित करते हुए कहा है,५५ 'रागादि कषाय भावों का होना हिंसा एवं उनका अभाव ही अहिंसा है।' हिंसाअहिंसा का सम्बन्ध व्यक्ति के अन्तःकरण से है। बाह्य परिस्थिति पर हिंसाअहिंसा का निर्णय इतना निर्भर नहीं है, जितना आन्तरिक भाव-जगत पर। कालकौसरिक कसाई को महाराजा श्रेणिक ने हिंसा विरत करने के लिए सूखे कुँए में उतरवा दिया; किन्तु वह वहाँ गीली मिट्टी के भैंसे बना-बनाकर पाँच-सौ पाड़े मारने का संकल्प करता रहा। श्रेणिक ने प्रभुवीर से प्रश्न किया'प्रभो! कालसौकरिक ने आज हिंसा नहीं की।' महावीर ने उत्तर दिया'राजन्! वह भावों के आधार से हिंसा कर चुका है।' तन्दुलिया मत्स्य मगरमच्छ की आँख-फलक पर बैठा हुआ मछलियाँ खाने के विचार-मात्र से सातवीं नरक का आयु-बन्ध करता है। भगवतीसूत्र में गौतम स्वामी द्वारा भगवान् महावीर से प्रश्न किया गया है--५६ 'प्रभो! किसी श्रावक ने त्रस प्राणी की हिंसा नहीं करने की प्रतिज्ञा ली हो, किन्तु पृथ्वीकाय आदि स्थावर जीवों की हिंसा से वह विरत न हो। यदि उस श्रावक से धरती खोदते समय किसी त्रस जीव की हिंसा हो जाए तो क्या उसकी प्रतिज्ञा खण्डित हई?' प्रभु महावीर ने उत्तर दिया- 'नहीं, उसकी प्रतिज्ञा खण्डित नहीं हुई।' क्रिया गौण एवं भाव मुख्य हैं। अतः प्राणातिपात में राग-द्वेष रूप प्रमाद विशेष कारण है। (२) मृषावाद- मृषा + वाद = मृषावाद। मृषा अर्थात् असत्य, विपरीत, अप्रिय, वाद अर्थात् कथन। अलियवचन पाठ भी मिलता है। वाणी स्व-पर हितकारी हो, तो सत्य कही जाती है।५८ हिंसा में निमित्त बने, ऐसा सत्य भी सत्य नहीं कहा गया। अन्य के कषायोत्पत्ति में निमित्त बनने वाला वचन भी सत्य होने पर सत्य की श्रेणी में नहीं आता। क्रोधित होकर अपनी पत्नी रेवती को उसका अंधकारमय भविष्य बताने पर महाशतक श्रावक को भगवान् ५४. अभिधानराजेन्द्रकोश/खण्ड ७/पृ. १२२८ ५५. पुरुषार्थसिद्धयुपाय/गा. ४४ ५६. ओघनियुक्ति/७४८-४९ ५७. भगवतीसूत्र/श. ७/उ. १ ५८. आचारांग/२१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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