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________________ कषाय और कर्म ७७ कषाय की जितनी तीव्रता होगी, संस्कार (विचार) उतने ही मलिन होंगे। कषाय की जितनी मन्दता होगी, विचार उतने ही सात्त्विक और शुभ्र होंगे। कषाय अनुरंजित इन लेश्या परिणामों की भिन्नता को 'आवश्यकसूत्र' की हारिभद्रीय टीका गोम्मटसार आदि में दृष्टान्त के माध्यम से समझाया गया हैजो इस प्रकार है। किसी वनखण्ड में भ्रमण करते समय छह मित्रों ने फलों से लदा जामुन का एक वृक्ष देखा। सबके मन में फल खाने की इच्छा पैदा हुई। एक मित्र ने कहा-'मित्रो! चलो ! ! इस वृक्ष को गिरा लें, फिर आराम से जामुन खायेंगे।' दूसरे ने कहा-'पूरा वृक्ष गिराने से क्या लाभ? बड़ी-बड़ी शाखाएँ तोड़ लेते हैं।' तीसरे ने विचार दिए-'बड़ी शाखाएँ तोड़ने का क्या अर्थ है? छोटी शाखाओं में ही फल बहुत हैं, इन्हें ही तोड़ लेते हैं।' चौथा बोला- 'नहीं नहीं!! शाखाएँ तोड़ना अनुचित है। फल के गुच्छे तोड़ना ही पर्याप्त होगा।' पाँचवें ने मधुर स्वर में परामर्श दिया-'अरे भाइयो! फलों के गुच्छे तोड़ने की क्या आवश्यकता है? इसमें तो कच्चे-पक्के सभी होंगे। हमें तो पके मीठे फल खाने हैं, फिर कच्चे फलों को क्यों नष्ट करें? ऐसा करो - पेड़ को झकझोर दो, पके-पके फल गिर जाएँगे!' छठा मित्र करुणार्द्र होकर कहने लगा- ‘क्यों पेड़ को झकझोरते हो? वृक्ष को क्षति क्यों पहुँचाते हो? जमीन पर कितने ही पके-पकाए फल गिरे पड़े हैं। इन्हें उठाओ और खाओ।' उपर्युक्त उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट होता है- विचारों में कितनी भिन्नता होती है। इस भिन्नता के आधार से छह भाव-लेश्याओं का निरूपण किया गया है। छहः लेश्याओं में से कृष्ण, नील और कापोत- ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विभिन्न दुर्गतियों में उत्पन्न होता है। पीत (तेजो), पद्म और शुक्ल ; ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है। पहली लेश्या है- कृष्ण! कृष्ण अर्थात् अंधकार, काला, अमावस की रात जैसा। क्रमश: अंधेरा कम होता जाता है। कृष्ण के बाद नील। अंधेरा अब भी है, लेकिन नीलिमा जैसा है। फिर कापोतकबूतर जैसा है। आकाश के रंग जैसा है। तेजो का रंग नवोदित सूर्य-सा है। जैसे भोर होते ही लालिमा चारों ओर बिखर जाती है, अंधेरा छंट जाता है। अतः इसे धर्म-लेश्या कहा है। पद्म का रंग कमल-पुष्प जैसा अर्थात् हल्का गुलाबी-सा है। अभी रंग है, राग है, वीतरागता नहीं है। श्वेत का रंग पूर्णिमा की चाँदनी, शंख के समान शुभ्र है। अन्धकार से प्रकाश की ओर इन लेश्याओं का क्रम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001719
Book TitleKashay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHempragyashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Kashaya
File Size11 MB
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