SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना उक्त कथनसे निम्न तथ्य सम्मुख आते हैं १. अनंगपाल प्रथम ( कल्हन ) ने जिस स्थानपर किल्ली गाड़ी थी, उसका नाम किल्ली अथवा कल्हनपुर पड़ा। २. अनंगपाल द्वितीय ( तोमर ) के व्यासने जिस स्थानपर किल्ली गाड़ी थी, उसे अनंगपालने ढीला कर निकलवा दिया । अतः तभीसे उस स्थानका नाम ढिल्ली पड़ गया। जिस स्थानपर किल्ली ढीली होनेके कारण इस नगरका नाम ढिल्ली पड़ा, उसी स्थानपर पृथिवीराजका राजमहल बना था । 'पृथिवीराजरासो' में इस दिल्ली शब्दका प्रयोग अनेक स्थलोंपर हआ है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंमें भी उसका यही नामोल्लेख मिलता है। विबुध श्रीधरने भी उसका प्रयोग तत्कालीन प्रचलित परम्पराके अनुसार किया है । अतः इसमें सन्देह नहीं कि दिल्लीका प्राचीन नाम 'ढिल्ली' था । श्रीधरके उल्लेखानुसार उक्त ढिल्ली नगर 'हरयाणा' प्रदेशमें था। (४) भारतीय इतिहासमें दो अनंगपालोंके उल्लेख मिलते हैं। एक पाण्डववंशी अनंगपाल (अपरनाम कल्हन ) और दूसरा, तोमरवंशी अनंगपाल । इन दोनोंकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है । 'पासणाहचरिउ' में दूसरे अनंगपालकी चर्चा है, जो अपने दौहित्र पृथिवीराज चौहानको राज्य सौंपकर बदरिकाश्रम चला गया था। उसके वंशज मालवाकी ओर आ गये थे तथा उन्होंने गोपाचलको अपनी राजधानी बनाया था जो तोमरवंशकी गोपाचल-शाखाके नामसे प्रसिद्ध है ।। 'ढिल्ली-नरेश अनंगपाल तोमरके पराक्रमके विषयमें कविने कहा है कि उसने हम्मीर-वीरको भी दल-बल विहीन अर्थात् पराजित कर दिया था । यह हम्मीर-वीर कौन था और कहाँका था, कविने इसका कोई उल्लेख नहीं किया, किन्तु ऐसा विदित होता है कि वह कांगड़ाका नरेश हालिराव हम्मीर रहा होगा, जो 'हाँ' कहकर अरिदलमें घुस पड़ता था और उसे मथ डालता था, इसीलिए उसे 'हाहलिराव' हम्मीर कहा जाता था। यथा हाँ कहते ढीलन करिय हलकारिय अरि मथ्थ । तार्थे विरद हमीर को हालिराव सुकथ्थ ॥ अनंगपालके बदरिकाश्रम चले जानेके बाद यह हम्मीर पृथिवीराज चौहानका सामन्त बन गया था, किन्तु गोरीने उसे पंजाबका आधा राज्य देनेका प्रलोभन देकर अपनी और मिला लिया। इसी कारण वह चालीस सहस्र पैदल सेना और पांच सहस्र अश्वारोही सेना लेकर गोरीसे जा मिला । हम्मीरको समझाबुझाकर दिल्ली लानेके लिए कवि चन्द वरदाई पृथिवीराजकी आज्ञासे कांगड़ा गये थे। चन्द वरदाईने उसे भलीभांति समझाया और बहुत कुछ ऊँच-नीच सुनाया किन्तु वह दुष्ट पंजाबका आधा राज्य पानेके लोभसे गोरीके साथ ही रह गया। इतना ही नहीं, जाते समय वह चन्द वरदाई को जालन्धरी देवीके मन्दिरमें बन्द कर गया। जिसका फल यह हुआ कि वह गोरी एवं चौहानकी अन्तिम लड़ाईके समय दिल्लीमें उपस्थित न रह सका। चौहान तो हार ही गया, किन्तु हम्मीरको भी प्राणोंसे हाथ धोना पड़ा। गोरीने उसे लालची एवं विश्वासघाती समझकर पंजाबका आधा राज्य देनेके स्थानपर उसकी गरदन ही काट डाली । १. सम्राट पथिवीराज-प.४० । २. पासणाहचरिउ (अप्रकाशित) १६२।२६; १८।१३ । ३. वही, २२।१४। ४. वही, श४।१।। ५. पृथिवीराजरासो-१८२६६ तथा १६॥२६-२७ । ६-७, Murry Northern India, Vol. I, page 375. ८. पासणाह. १०४।२। ६. सम्राट् पथिवीराज, १.८५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy