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________________ प्रस्तावना इनके अतिरिक्त कविने अन्य वैज्ञानिक तथ्य भी उपस्थित किये हैं, जो भूगर्भ विद्या (Geology) की दृष्टिसे अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। उदाहरणार्थ-कविने भूमि अथवा पृथिवीके दो भेद किये हैं(१) मिश्र भूमि तथा (२) खरभूमि । मिश्रभूमि वह कहलाती है जो स्वभावतः मृदु होती है तथा जिसमें कृष्ण, पीत, हरित, अरुण एवं पाण्डुर-वर्ण पाया जाता है । इसके विपरीत खरभूमि वह है, जिसमें शीशा, ताँबा, मणि, चाँदी एवं सोना पाया जाता है।' कविने उक्त दोनों प्रकारको भूमिको एकेन्द्रिय जीव माना है तथा मृदुभूमिकायिक जीवोंकी आयु १२ सहस्र वर्ष तथा खरभूमि कायिक जीवोंकी आयु २२ सहस्र वर्ष मानी है। कविका यह कथन वर्तमान भूगर्भशास्त्रवेत्ताओं (Geologists ) को खोजोंसे प्रायः मेल खाता है। ___ इसी प्रकार कवि द्वारा प्रतिपादित प्राणियोंके विविध स्थूल एवं सूक्ष्म भेद ( Kinds), उनका स्वभाव (Nature ), आयु ( Age ) आदि भी अध्ययनीय विषय है । यह वर्णन भी वर्तमान प्राणिशास्त्रवेत्ताओं ( Zoologists ) की खोजोंसे मेल खाता है। वस्तुतः इस दिशामें अभी गम्भीर तुलनात्मक अध्ययन नहीं हो सका है, जिसकी कि इस समय बड़ी आवश्यकता है। १७, राजनैतिक-सामग्री 'वड्ढमाणचरिउ' में भगवान् महावीरके जीवन-चरितका वर्णन है, इसके अतिरिक्त उसमें धर्म, दर्शन एवं अध्यात्म सम्बन्धी सामग्रीकी भी प्रचुरता है, किन्तु चूँकि वर्धमान स्वयं क्षत्रियवंशी तथा सुप्रसिद्ध राजघरानेसे सम्बन्ध रखते थे, अतः कविने उनके वर्तमान जीवन तथा पूर्वभवावलीके माध्यमसे राजनीति तथा युद्धनीतिसम्बन्धी सामग्री प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त कर लिया है । 'वड्माणचरिउ' में राजनीतिसम्बन्धी जो भी सामग्री उपलब्ध है, उसका वर्गीकरण निम्नप्रकार किया जा सकता है (१) राजतन्त्रात्मक प्रणाली, उसमें राजाका महत्त्व तथा उसके कर्तव्य । (२) राज्यके सात अंग । (३) तीन बल । (४) दूत एवं गुप्तचर त या (५) राजा के भेद १. राजतन्त्रात्मक प्रणाली, उसमें राजाका महत्त्व तथा उसके कर्तव्य कवि श्रीधर प्रशासनिक-दृष्टिसे राजतन्त्र प्रणालीको सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। राजतन्त्रमें राजा ही उसकी रीढ़ होता है । अतः कविकी दृष्टिमें योग्य राजाके बिना दुष्ट शत्रु-निग्रह ( १।५।६ ), राष्ट्र-रक्षा ( १।५।६, ३।२४।८) नृपश्री-विस्तार (३७९ ) ( २।२।१०), प्रजापालन ( २।२।४ ), राष्ट्र-समृद्धिकी वृद्धि ( २१२१५ ), शासन ( ११५१ ). अनुशासन ( ११५।१ ), शिष्टजनोंका पुरस्कार (११५।७ ), दीन-दलित वर्गका उद्धार (११५।११) एवं समाज-कल्याण ( १।५।११, ३१२४८ ) सम्भव नहीं । राजाके अन्य गुणोंमें उसे मधुरभाषी ( ११५।१३ ), गम्भीर ( १।५।५), विनम्र (१।५।५), चतुर, स्वस्थ और सुन्दर ( ११५।२, २।३।४), धर्मात्मा (१।५।२), नीतिवेत्ता ( १।५।१ ), सरस ( ११५।९ ) एवं पराक्रमी ( १।५।५, २।३।६) आदिका होना भी आवश्यक बताया गया है। किन्तु विबुध श्रीधरका यह राजतन्त्र निरंकुश न था। जब १. वडढमाण-१०७१-४। २. वही, १०१७।१३ । ३. बही, १४--८,१७,१८१ . ४. वही, १०।१८-२१ । ५. वही, १०।५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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