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वडमाणचरिउ
आश्वस्त कर उसे प्रतिबोधित भी करते हैं। भविष्यरूपासे वियुक्त होने के बाद भविष्यदत्त अत्यन्त निराश एवं दुखी रहता है, यह देखकर कवि कहता हैमा करहि सोउ णियमणि मइल्ल
जिणधम्मकम्म विरयण छइल्ल । संजोय विओयइ हंतु जाणु, .
सम्वहिँ जणाहिँ मा भंति आण ॥४॥६ रूप-सौन्दर्यके स्वाभाविक वर्णनमें कविने अपने साहित्यिक चातुर्यका अच्छा परिचय दिया है । भविष्यदत्तके बालरूपका वर्णन कविने इस प्रकार किया है
सो कविल-केस जड कलिय सीसु धूली उधूलिय तणु विहीसु । कर-जुवल कडुल्ला सोहमाणु
पायहि णेउर रंखोलमालु ॥ इसी प्रकार वह भविष्यरूपाके सौन्दर्यका वर्णन करते हए कहता हैबालहरिणिं चंचलयर णयणी
पुण्णिम इंद-बिंब-सम वयणी। रायहंसगामिणि ललियंगी
अवयवेहि सव्वेहि वि चंगी॥ नगर-वर्णनमें कविकी सूक्ष्म दृष्टिके चमत्कारसे वहाँकी छोटी-छोटी वस्तुएँ भी महानताको प्राप्त हो जाती हैं । गजपुरका वर्णन करते हुए वह कहता हैतहिँ हत्थिणावरु वसइ णयरु
पवरावण दरिसिय रयण पवरु । जहिँ सहलइ सालु गयणग्ग लग्गु हिमगिरि व तुंगु विच्छिण्ण मग्गु । परिहा सलिलंतर ठियमरालु
णाणामणि णिम्मिय तोरणालु । सुरहर धय-धय चंचिव णहगु
पर-चक्क-मुक्क-पहरण अभग्गु । कवसीसय पंतिय सोहमाणु
मणिगण-जुइ अमुणिय सेयमाणु । मंगल-रव विहिरिय दस-दिसासु
बुहयण धणट्ठमाण वणिवासु जहिँ मुणिवरेहि पयडियइ धम्म
परिहरियइँ भन्वयणेहिँ छम्मु । जहिँ दिज्जइ सावय-जणहिँ दाणु
विरएविणु मुणिवर पयहिँ माणु । जहिं को वि ण कासु वि लेइ दोसु ण पियइ धज-धण्ण करण कोसु । मणि को वि ण खणु वि धरेइ रोसु मणि दित्तिए ण वियाणियहँ गोसु । जहि कलहु कहिं वि णउ करइ कोवि मिहुंणई रइ कालि-भिडंति तो वि ।-भविस. ११५
प्रकृति-चित्रण में कविने गीति-शैलीके माध्यमको अपनाया है। भविष्यदत्त दीक्षा-ग्रहण करने के बाद अटवीमें तप हेतु जाता है। वहाँ भविष्यदत्तने जो दृश्य देखा, कविने उसका चित्रण निम्न प्रकार किया हैदिट्ठाइँ तिरियाई
बहुदुक्ख भरियाई। गयवरही जंतासु
मय-जल-विलित्तासु। कित्थु वि मयाहीसु
अणुलग्गु णिरभीसु। कित्थु वि महीयाहँ
गयणयलु वि गयाहँ। साहसु लोडंतु
हरिफलई तोडंतु। केत्थु वि वराहाहँ
बलवंत देहाहँ। महवग्घु आलग्गु
रोसेण परिभग्गु। केत्थु वि विरालाई
दिट्ठई करालाई। केत्थ वि सियालाई
जुझंति थूलाई। तह पासै णिजझरइ सरंतई
किरिकंदर विवराई भरंतई।-भविस. ५।१०
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