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________________ प्रस्तावना १२ भविष्यदत्तके वियोगमें दुःखी हो जाती है तथा उसकी कुशलताके हेतु निर्जल व्रत धारण कर देवाराधन करती है। बन्धुदत्त अवसर देखकर भविष्यरूपाको नये-नये प्रलोभन देकर फुसलाता है, किन्तु उसमें उसे सफलता नहीं मिलती। बन्धुदत्तकी दुष्प्रवृत्तिसे वह समुद्र में कुदनेका विचार करती है, किन्तु एक देवी उसे स्वप्न देकर आश्वासन देती है तथा कहती है कि "निर्भीक रहो, भविष्यदत्त सुरक्षित है । वह एक माहके भीतर ही तुम्हें मिल जायेगा।" जब बन्धुदत्तका जलयान गजपुर पहुंचा, तब वहाँ उसने भविष्यरूपाको अपनी पत्नी घोषित कर दिया। उधर पूर्वभवका परिचित वही विद्याधर देव उदास एवं निराश भविष्यदत्तके पास आया और उसने निवेदन किया कि “गजपुर चलनेके लिए विमान तैयार है।" अनेक धन-सम्पत्तिके साथ भविष्यदत्त उसमें बैठकर गजपुर आया और सीधा मौके पास गया। अगले दिन वह हीरा-मोतियोंसे भरे थाल लेकर भेंट करने राजाके यहां पहुंचा। वहां उसने अपने पिता सेठ धनपति एवं बन्धुदत्तके, अपनी माँ एवं अपने प्रति किये गये दुर्व्यवहारोंकी चर्चा की तथा भविष्यरूपाके साथ बन्धुदत्तके द्वारा किये गये घृणित व्यवहारके विषयमें शिकायत की । राजा भूपाल यह सुनकर बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने उन दोनोंको दण्डित कर भविष्यरूपाके साथ भविष्यदत्तके विवाहकी अनुमति प्रदान की तथा उसे अपना आधा राज्य प्रदान कर अपनी पुत्री सुमित्राका विवाह उसके साथ कर दिया। [चौथी सन्धि] । राजा बन जानेके बाद भविष्यदत्त और भविष्यरूपाका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होने लगा। कुछ समय बाद भविष्यरूपा गर्भवती हई। उसे दोहलेमें अपनी जन्मभूमि तिलकद्वीप जाने की इच्छा हुई। संयोगसे उसी समय तिलकद्वीपका एक विद्याधर वहाँ आया तथा भविष्यदत्तसे बोला कि "उसकी ( विद्याधरकी ) माँ भविष्यरूपाके गर्भमें आयी है, अतः वह भविष्यरूपाको तिलकद्वीपकी यात्रा कराना चाहता है।" यह कहकर वह अपने विमानसे भविष्यरूपाको तिलकद्वीप ले गया। वहाँसे लौटनेके बाद ही उसे सोमप्रभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। तदनन्तर उसे क्रमशः कंचनप्रभ (पुत्र) तथा तारा और सुतारा नामकी दो पुत्रियां उत्पन्न हुई। इसी प्रकार सुमित्रा नामक दूसरी पत्नीसे भी धरणीपति (पुत्र) एवं धारिणी ( कन्या) का जन्म हुआ। भविष्यदत्तने अपने पुरुषार्थ-पराक्रमसे सिंहलद्वीप तक अपना साम्राज्य बढ़ाकर पर्याप्त यशका अर्जन किया। इसी बीच में चारणऋद्धि-धारी मुनिराज वहाँ पधारे और भविष्यदत्तने उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली। [पाँचवीं सन्धि ] घोर तप करनेके बाद भविष्यदत्तको निर्वाण-लाभ हआ। कमलश्री, धनपति और भविष्यरूपाने भी दीक्षा धारण कर घोर तपस्या की और स्वर्ग प्राप्त किया। [ छठी सन्धि ] विबुध श्रीधरकी यह रचना बड़ी मार्मिक है। सामाजिक-जीवनमें सौतेली माँकी कपट वृत्ति, उपेक्षिता एवं परित्यक्ता महिलाके इकलौते पुत्रका समयपर परदेशसे वापस न लौटना, तथा सौतेले पुत्रका कपट-भरा दुर्व्यवहार मानव-जीवनके लिए अभिशाप बन जाता है। कविने इस विडम्बनाका मार्मिक चित्रण इस रचनामें किया है। परदेश गये हुए पुत्रके समयपर वापस न लौटनेसे मां कमलश्री निरन्तर रो-रोकर आँसुओंके पनाले बहाती रहती है। उसे न भूख लगती है और न प्यास । कविने उसका चित्रण निम्न प्रकार किया है ता भणई किसोयरि कमलसिरि ण करमि कमल मुहल्लउ । पर सुमरंति हे सुउ होइ महु फुट्ट ण मण हियउल्लउ ।।३।१६ रोवइ धुवइ णयण चुव अंसुव जलधारहिं वत्तओ । भुक्खई खीणदेह तण्हाइय ण मुणई मलिण गत्तओ ॥४।५ कवि श्रीधर हृदयमें समाहित घोर विषादका मनोहारी चित्रण करने में भी कुशल हैं । वे सन्तप्त मनको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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