________________
___15
२७० वड्डमाणचरिउ
[१०.३५. १४इंदिय भेएँ पंच पयारा
भणमि वप्प सइ-रमणि पियारा। छह पयार जाणहिँ काएणं दह विहपाण सुणहिँ जोएणं। तिप्पयार पयडिय वेएणं
जिणधीरेण पडित्ति रएणं । सोलह भणिय कसाय जिणेणं अट्ठपयार मुणहिँ णाणेणं । संजमेण पुणु सत्त ति भेया
दंसणेण दरिसिय चउभेया। छविह लेसा परिणामेणं
दो विह मुणि भव्वत्त-गुणेणं । छब्विह विवरिय सम्मत्तेणं
सत्त तच्च दवह छह तेणं । घत्ता-जे जे आहार आहरिया भणिउ जिणिंद भडारें।
ते ते सुपरिय चउगइहे किं वहुणा वित्थार ।।२२८।।
३६
जे विहुणिय-तम केवलि समुहय अरुह अजोइ विण?-वियप्पय ते गिण्हहिं णाहारु णिरिक्खिय रयण-संख-विह मग्गण-ठाणइँ तित्तिय परिमाणाई पयत्तें मिच्छा सासण मिस्स समासिउ देसविरउ पमत्तु छट्ठत्तउ पुणु अउवु अणियट्टि भणिज्जइ उवसंतु जे पुणु खीण कसायउ पुणु अजोइ संजणियाणंद चारि गहहिं णारय अमियासण तिरिय पंच माणुस णीसेसई कम्म महिय सरीर अप्पावण दंसण-णाण णिदीण महुत्तम ताह समास महा तियरण मइ जिह सिहि सिह परिणामहो गच्छइ तिह कम्म वि पुग्गल-परिमाणहो जीवें संगहियउ कयभावहो इंधणु सिहि भावह गच्छइ जिह
अवरवि जाणहि विग्गह-गइ गय । सुद्ध-पवुद्ध-सिद्ध-परमप्पय । सेसाहारिय जीव समक्खिय । भणिय, एवहिं सुणु गुणु ठाणई। पोलोमी-पिय णिच्चल-चित्तें। अविरयदि ट्ठि चउत्थउ एसिउ । अप्पमत्तु सत्तम मुणि खुत्तउ । सुहमराउ दहमउ जाणिज्जइ । पुणु सजोइजिण मइ विक्खायउ । उपरिम परम सोक्खलय कंदउ। फुडु धरंति रइ भाव पयासण । वज्जरियई गुण ठाण विसेसई। अणिहण करण विहाण पहावण | हुंति जीव अइ-सामण्णुत्तम । ताए विहव कम्म धारण लइ। तेल्लु तिलोयाहीसु णियच्छइ । जीवहँ जाइ णिरुत्तु अकामहो । परि गच्छइ णिरु चेयणभावहो । कम्मिधण भावहो कम्मुवि तिह ।
15
३५. १. J. V.ण। ३६. १. D. J. V. सं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org