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________________ २६० बडमाणचरिउ [१०.२८.४अवरहँ पुह विहु पुणु जाणिव्वउ दूणु-दूणु एउ जि विरएव्वउ । एमु करतहो नारयर मियहो धणु पंच सय होंति सत्तमियहो । एक-ति-सत्त-दह जि सत्तारह अणुकमेण दुगुणिय एयारह । तेतीस जि सायरई जिणिंदें आउ माणु वज्जरिउ जिणिदें। उक्किटेण जहन्ने जाणहि दह वैरिस-सहस पढमई माणहि । जं पढमहि उत्तमु तं वीयहि होइ जहन्नाउसु अवणीयहि । जं वीयहि उत्तमु तं तइयहे होइ जहन्नु पावसंछइयहे। एण पयार मुणि सक्कंदण अवरहँ वि संका णिक्कंदण । घत्ता-विक्किरिया तणु महीहाउसइँ होंति अहोहो विवरई। विछिन्नई वित्थारिय-रणइँ दुप्पिक्खई घण-तिमिरई ॥२२१।। 10 नरयनिवासु कहिउ एव हि पुणु एक्कचित्तु होइवि सुरवइ सुणु । सुर दहट्ट पण-सोलह-बे-नव. पंचपयार पुरो-विरइय-तव । एयहिँ पढम रयणपह-नामहे महि हि जि णायरि सत्थि सणामहे । जे खरवहुल-पंकवहुलक्खइँ दो खंडई णानिहु पञ्चक्खई। सुणिहुँ तई उवरि[माइंतहिं]असुर णिवासई चउगुण सोलह सहस सुवासई । चउरासी नायहँ सुरवन्नहँ सत्तरि दोहिमि मीसि सुवन्नहँ । आसाणल मयरहरकुमारहँ दीव-थणिय-विज्जुलिय-कुमारहँ। छाहत्तरि लक्खइँ एक्किक्कहो एउ भावण - घरु-माणु पउत्तई। एकिहि मिलियई हुंति समक्खई सत्तकोडि बाहत्तरि लक्खई। तित्तिय होंति जिणिंदहो गेहइँ कुसुम-गंध-वस मिलिय-दुरेहइँ । चउदह सहस निवासइँ भूयह रक्खसाहँ सोलह गुणभूयहँ । 10 २८. १. J. V. एम्व । २. D. विरं । ३. J. V. °दि । ४. J. सका।। २९. १. D. J. V. हो। २. J. V. हो। ३. D. J. V. प्रतियोंमें यह पंक्ति एक समान है। इसमें 'माइंतहि' पाठके कारण छन्दोभंग होता है। इस पंक्तिके प्रथमचरणका पाठ इस प्रकार भी हो सकता है-सुणि तहोवरि असुरणिवासई । ४. D. सा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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