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१०. २८. ३ ]
हिन्दी अनुवाद
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नारकी जीवोंके दुखोंका वर्णन
कोई किसीको क्रोध उत्पन्न कर देता है, तो कोई चक्र द्वारा उसके वक्षस्थलको छिन्न-भिन्न कर देता है । कोई किसीको अंगार वर्णका बना देता है तो कोई किसीको प्रज्वलित अग्निमें झोंक देता है । कोई किसीपर अत्यधिक अप्रसन्न होकर उसे पकड़कर विदारण कर उसका तिल-तिल समान खण्ड कर डालता है। एक कोई उसके निन्दित मांसको लेकर चिल्लाकर ( दूसरे नारकीसे ) कहता है - हे मांसाशी, दुष्ट, हे घातक, हे दरिद्र, इसे ले ले, देखता क्या है ?
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'हे हताश, हे पिशाच, तू कहाँ चला गया ? वनमें कातर वनचरोंको मारकर अपने मनमें तूने उन्हें खानेकी अभिलाषा क्यों की थी ? हे नाग, ( पूर्वभवमें) क्रूर भाव धारण कर तूने लोगोंको सन्तप्त क्यों किया था ? तूने दूसरोंको मदिरा कहकर विष क्यों दिया था ? हे प्रिय, उस निन्दित मदिराको तूने पिया क्यों था ? हे फणीन्द्र, तू इसके चरणोंमें नमस्कार कर।' इस प्रकार नारकीजन परस्परमें चिल्ला-चिल्लाकर कहा करते हैं । "नवरसोंको जानकर तूने खूब सुख-प्रसंग किये । १० तूने परस्त्रियों की गुप्त बातोंको स्पष्ट कहा, परस्त्रियोंके साथ रमता हुआ उन्मार्ग में गया, बुद्धिको धर्मरहित किया, आत्मशुद्धिको प्राप्त नहीं किया, परलोकका वारण किया तथा परलोकपर विचार भी कभी नहीं किया था, पहले तू जिस प्रकार रमा था, उसी प्रकार अब तू अग्निके समान लाल वर्णवाली इस लोहमय देहसे आलिंगन कर और ऐसा मान कि वह तुझमें आसक्त है | स्वर - कोकिला परकीया बालाओंको मनोज्ञ मानकर उनके प्रति प्रेम प्रकट करता था । कराल काँटों- १५ वाली ये ही वे बालाएँ हैं क्या अब तुझे अपने उन दुष्कार्योंका स्मरण नहीं है ? इनका आलिंगन कर । चिरकालसे तेरा ऐसा ही चरित्र रहा है ।
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घत्ता - क्षेत्रोद्भव दुख, मानसिक दुख और असुरों द्वारा प्रेरित दुख परस्पर कृत दुख तथा नारकियों द्वारा प्रेरित दुख इस प्रकार नारकियोंके ५ प्रकारके दुख कहे गये हैं ||२२०||
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नारकियोंके शरीरकी ऊँचाई तथा उत्कृष्ट एवं जघन्य आयुका प्रमाण
वहाँ न तो अविनिन्दित - प्रशंसनीय स्त्रियाँ ही हैं, और न पुरुष ही । वे नग्न भी नहीं रहते । सभी विशेष रूपसे निन्दित नारकी रहते हैं ।
प्रथम नरकके नारकियोंके शरीरका प्रमाण वीर जिनने सात धनुष, तीन हाथ और छह
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