________________
15
5
10
15
२५२
मिय विज्जीवत्तीस - सहास हिं चवीसेहिँ चउत्थी वीस हिं छट्ठी पण दुगुणिय अट्ठहिं
वडमाणचरिउ
Jain Education International
घत्ता - आयउ पिंडेण सुरिंद मुणि विगय-संख आयामें । एक्क्की णारइयहिँ धरणि भणिउ जिणें जियकामें ॥। २१५ ।।
रणप्पा पढम सक्कर पहा दुइय धूम पहा पंचमी अवरंणिखुत्त या भूमीहु दुह पवर अवरा मुणि ती पण वीस-पंचदह दह - तिणि पंचविल नारइय तहि दुक्ख भुंजंति दरिसिय-मयाहीस - मायंग - रुवाइँ महिय हेट्ठामुहोलंवियंगाइँ दुग्गंध देहा हूँ दुग्गम तलाइँ
- तिरिय पर त्थु पावेण जायंति संभवइ तहि णाणु मिच्छा विहंगक्खु अंगार-संघाय - मंसि - कसण संकास पविरइय भू- भिउडि-भंगुरिय भालयल जिह - जिह विहंगेण जाणंति अप्पाणु - हेट्ठा मुहं ते असि पत्तवर्ण
धत्ता
तइय मुणेव्वी अट्ठावीसहिँ । आहासीय पंचमिय रिसीसहिँ । सत्तमियावणि जाणहि
।
[ १०.२२. १४
२३
वालुवा तइय पंकप्पहा तुरिय | तमपह महातमपहा सत्तमी वृत्त । तिमिरोह - भरिया हूँ णिरु होंति विवराइँ | पंचूण्णु एक्कु सरसहसु मणि भिणि । कसणाइँ काय-लेसा-बसा हुंति । पंच्चक्ख हूवाई णं णियई दूवाइँ । इच्छिय महा-भीम-रण-रंग-संगा हूँ । खर-लोह - मय - कील-कंटय- कराला हूँ । सहसा मुहुत्ते हुंडंग गिति । जिणमय विक्खणहँ अवही मणे लक्खु । पायडिय - दंतालि संजणिय-संतास । कवि लुद्ध धम्मिल्ल ख-भरिय गयणयल । तिह- तिह जे सुमरंति तं तं जि णिय-ठाणु । परिवडंति रोसारुण । 'ह हणु' भणति जुज्झण- णिरय णिच्च रइय-रण-दारुण ।।२१६||
२ . १. D. J. V. दइय । २. D. पं° । ३. D. 'यां । ४. D. मं । ५. D. ° रक्खु । ६. D.°मि | ७. D. हि ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org