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agमाणचरिउ
घत्ता—छम्मासाउसु’चउरिंदियाँ पंचेंदिर्याहि विदिट्ठी । कम्मावणि भूयर अणिमिसहिँ पुग्व कोडि उवविट्ठी ॥ २०५ ॥ ॥
दुगुणिये-एकवीस - सहसद्दइँ ताइँ जिणेंदें भाव - णिवारिय कत्थवि खेत्तावेक्खइँ तिरियहँ भणिय तीने पलिओवम एहउ माया तुळे कुपत्तहँ दा एए उपज्जहिं इह तिरिय हूँ - दुगुणि-पणारह तिरिय लोउ लच्छी अवजाढउ तिगुणियँ पण दह लक्ख पमाणउ मह जोयण सय सह से परिमिउँ जोयण पंचसयइँ छब्बीसइँ राव पुणु एण पयारें उत्तर- दाहिण दिस परिट्ठिय
हिमवंत वित्थारु समासिउ बारह कल सउ जोयण जाणहिँ वंत खेत्तो पंचाहिय होइ हिरण्णवत् पुणु एत्तिउ च-सहास दो सय दह दह कल रुम्मि गिरिंदु वि एत्तिउ लक्खिउ एक्कवीस जुय चउरासी सय हरिवरसहो रम्मयहो वियाणहिं वेकल वेयाहिय चालीस इँ णिसुढो एउ उत्तु पहुत्तणु
fot उ माणु भासिव्वउ पित्तणु देवेण विदेह हो चउकल चउरासी छ संयाहिय
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घत्ता - जोयण पंचास जि वित्थर हूँ भणिउँ ताहँ पिहुलत्तणु । णि मणि जाहिं दह सय-गयण पंचवीस उच्च त्तणु ॥ २०६ ॥
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उर जियंति गईंद विमद्द हूँ । वाहत्तर हरहँ समीरिय । पंचेंदियहँ सकम्मा वरियहँ । उत्तमा महूँ भासिउ जेहउ । अट्ठ-झाण-वस मरि अण्णाणें । कहियइँ एवहिं पभणमि मणुवहूँ । अवरवि पुणु छण्णव वियारहूँ । मणुसोत्तर - महिहर-परिवेढिउ । जंवुदी तहिं दीव राणउँ । भरवरि तह दाहिण - दिसि ठिउ । वित्रेण छकला परिमीस हूँ । जाणि किं बहु वित्थालेँ । विजयायल रुप्पमय अणिट्ठिय ।
[ १०. १२. १९
१३. १. D.ळण ं । २. D.
३. D. । ४. J. V. जिय ।
१४. १. D. हुई° । २. D. उ । ३. D. छयाहिय । ४. D. ह ।
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एक्कु सहसु वावण्ण-विभीसिउ । उच्च सिहरिवि वक्खाणहिं । एकवीस सय कलपण साहिय । णिसुणि महाहिमवंत हो जेत्तिउ । दो सय मुणि उच्चत् णिक्कल । जिणणाहेण ण भव्वहँ रक्खि । एक कलाहिय गणिय समागय । एत्तिउ यि मणि अणुहरे आणहिँ । अस दुगुणिय वसुसहमहूँ । चारि सयाइँ तहय उच्चत्तणु । पुच्छंत हो संसउ णिहणेव्वड । भासि मण चिंतिय सुहणेह हो । सहसेयारहँ* तिगुणिय साहिय ।
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