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वढमाणचरिउ
[१०.७.१
पंचवण्ण मणि रुट्टिय दुविहे वि होइ मिस्सणामें किर अवरवि । कसण-पीय-हरियारुण-पंडुर
अवरवि पुणु उब्भासिय धूसर। एरिसमउ मेइणि महिकायहँ
पंचवन्न-गुण-भासिय आयह । तेउव-तंव-मणि-रुप्पय-कंचण
खर-पुहवी पभणंति विवंचण । घेय महु मज्ज खीर खार सरिस जल जाई वि पयंपिय विसरिस । दूरहो दूसह-धूम-पयासणु
पवि-रवि-मणि-तडि-जाइ हुवासणु । उक्कलि मंडलि आइ करंतउ
मरुण ठाइ दिसि विदिसिहि जंतउ । गुच्छ-गुम्म-वल्ली-वण-पव्व हिं एवमाइ ठाणहि लइ सव्व हि। वणसइ काय णिरारिउ णिवसहिँ पुत्वन्जिय णिय कम्मई विलसहिँ पज्जत्तेयर सुहुमेयर जिह
साहारण-पत्तेय वि मुणि तहँ । साहारणहँ होति साहारण
सयलवि आणा पाण आहारण । पत्तेयहँ फुडु पत्तेयंगई
छिंदण-भिंदण वसहु अहंगइ। मिदुमहि वरिस-सहासई वारह खरहु जाणि दुगुणिय एयारहँ। आउहे सत्त सहस अह रत्तए तिण्णि हुंति हुववहहो णिरुत्तई। पत्ता-ति-सहस-वरिसाइँ समीरणहो दह वणसइ-जीवइ जिह ।
परमें अहमें आउसु जियहँ भिण्णि मुहुत्तु भणिउ तिह ॥२००।।
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अक्ख-कुरिक-किमि-सुत्ति-सुसंखई तेइंदिय मुणि गोभि-पियीलिय चरिंदिय दंस-मसय-मक्खिय किंपि नाणु परिवाड़ीष्ट एयहँ रसु-गंधु-णयणु एक्केक्क दिउ पज्जत्तीउ पंच तहो लक्खिय
वेइंदियई हवंति असंखई। मई केवलणाणेण णिहालिय । मई जाणेविणु तुज्झु समक्खिय । जुत्तिए वियलहँ होइ ति-भेयहँ। फासहो उप्परि चउर अणिंदिउँ । छह सत्तट्ठ पाण कय संठिय ।
७. १. J. V. तउ । २. D. घज । ३. D. अं। ८. १. J. V. द ।
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