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________________ २३२ वढमाणचरिउ [१०.७.१ पंचवण्ण मणि रुट्टिय दुविहे वि होइ मिस्सणामें किर अवरवि । कसण-पीय-हरियारुण-पंडुर अवरवि पुणु उब्भासिय धूसर। एरिसमउ मेइणि महिकायहँ पंचवन्न-गुण-भासिय आयह । तेउव-तंव-मणि-रुप्पय-कंचण खर-पुहवी पभणंति विवंचण । घेय महु मज्ज खीर खार सरिस जल जाई वि पयंपिय विसरिस । दूरहो दूसह-धूम-पयासणु पवि-रवि-मणि-तडि-जाइ हुवासणु । उक्कलि मंडलि आइ करंतउ मरुण ठाइ दिसि विदिसिहि जंतउ । गुच्छ-गुम्म-वल्ली-वण-पव्व हिं एवमाइ ठाणहि लइ सव्व हि। वणसइ काय णिरारिउ णिवसहिँ पुत्वन्जिय णिय कम्मई विलसहिँ पज्जत्तेयर सुहुमेयर जिह साहारण-पत्तेय वि मुणि तहँ । साहारणहँ होति साहारण सयलवि आणा पाण आहारण । पत्तेयहँ फुडु पत्तेयंगई छिंदण-भिंदण वसहु अहंगइ। मिदुमहि वरिस-सहासई वारह खरहु जाणि दुगुणिय एयारहँ। आउहे सत्त सहस अह रत्तए तिण्णि हुंति हुववहहो णिरुत्तई। पत्ता-ति-सहस-वरिसाइँ समीरणहो दह वणसइ-जीवइ जिह । परमें अहमें आउसु जियहँ भिण्णि मुहुत्तु भणिउ तिह ॥२००।। 18 अक्ख-कुरिक-किमि-सुत्ति-सुसंखई तेइंदिय मुणि गोभि-पियीलिय चरिंदिय दंस-मसय-मक्खिय किंपि नाणु परिवाड़ीष्ट एयहँ रसु-गंधु-णयणु एक्केक्क दिउ पज्जत्तीउ पंच तहो लक्खिय वेइंदियई हवंति असंखई। मई केवलणाणेण णिहालिय । मई जाणेविणु तुज्झु समक्खिय । जुत्तिए वियलहँ होइ ति-भेयहँ। फासहो उप्परि चउर अणिंदिउँ । छह सत्तट्ठ पाण कय संठिय । ७. १. J. V. तउ । २. D. घज । ३. D. अं। ८. १. J. V. द । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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