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________________ २२८ वड्डमाणचरिउ [ १०.४.४वियलिंदियहँ मुणिंद समक्खहिँ विण्णि-विण्णि लक्खई उवलक्खहिँ। चारि-चारि लक्खई नारइयहँ हुँति ण एत्थु भंति सुर तिरियहँ । पत्तेयावणियह दह लक्खई जिह तिहणरहँ चउद्दह लक्खई। इय चउरासी लक्खई जोणिउँ सयल मिलिय हवंति दुह खोणिउँ । महि-कायहँ जडयण दुल्लक्खइँ वाईस जि कुल कोडिउ लक्खई। जल कायहि सत्त जि सिहि कायह तिणि सत्त जाणहिँ मरु कायहँ । अट्ठावीस वणप्फइ कायहँ जिणवर भणियागम विक्खायह। वियलिंदियह कमेण समीरिय सत्त अट्टणव भँति णिवारिय । पंचें दिय जलयरह णरक्खिय अद्ध विमीसिय वारह लक्खिय । पक्खिहुँ वारह दह चउ चरणहँ णव पउत्त उर-परि संसरणह । पंचवीस णारयह णरह जिह चउदह छन्वीस जि अमरह तिह । पत्ता-पंचास कोडि सहसे हिणव णवइ कोडि लक्खेहि सहु। एक जि कोडा कोडी हवइ सयल मिलिय पुव्वुत्तरहूँ ॥१९७।। 10 15 आयहिं ते भमंति दुह-गंजिय हुति अणेय वियल पंचें दिया मण-वय-तणु-कय-करणाहारहँ जं निव्वत्तणु करणहो कारणु तं जिणणाहे छव्विहु भासिउ भिण्ण-मुहुत्त थाइ अहम जिउ दह वच्छर सहास णिवसइ जिह तेतीसंवुरासि परमें मुणि एइंदियह चारि पजत्तिउ पंचे दिउ असण्णि जा ताव हि अण्णण्णंगय राएँ रंजिय । पंच पयार भणिय एइंदिय। परमाणुवढं सगुण-वित्थारहँ। तं पज्जतिओ फुड अणिवारणु। मंद मइल्लहु संसउ णासिउ । अमुणंतउ स-हियए अप्पहो हिउ । णरय-णिवास-सुरावासउ तिहूँ। पल्लइ तीणि नरय तिरियह सुणि । वियलिंदियह पंच पण्णत्तिउ । णाणवंत मुणिवर परिभावहिं। 10 २. J. V. णं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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