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________________ २२६ 10 वडमाणचरित [१०. २.८पंच सयहिं दिय-सुयहें समिल्ले लइय दिक्ख विप्पेण समेल्लें। पुवण्हई सहुँ दिक्खए जायउ_ लद्धिउ सत्त जासु विक्खायउ । तम्मि दिवसे अवरण्हए तेण वि सोवंगा गोत्तम णामेणवि। जिण-मुह-णिग्गय-अत्थालंकिय वारहंग सुय-पय रयणंकिय । घत्ता-संपत्त सयल अइसय जिणहो रयइ थोत्तु गुरु भत्तिए । सेहर मणियर भासिय गयणु वित्त सत्तु णियखंतिए ।।१९५।। जय देवाहिदेव दुरियासण जीवाजीव-विभेय-पयासण । जय रयणमय-पंचवयणासण चउ-गइ भव दुक्खोह पण्णासण । जय सयलामल केवल-लोयण लोयालोय भाव अवलोयण । जय सयलंगि-वग्ग-मण-संकर सिद्धि पुरंधिय संकर संकर । जय जिणवर-तित्थयर-दियंवर णिय जसोह णिजिय सरयंवर । जय दयलय परिवड्ढण विसहर णिद्दारिय रइवर सर विसहर । जय पंचेदिय-हरिण-मयाहिव छद्दवाईरिय तिजयाहिव । जय लोहाहिय संथुय णीयर मुह-पह-णिन्भच्छिय णवणीयरें। जय दिव्वझुणि पूरिय सुरवह तिरयण विणिवारिय असुहरवह । जय धणवइ पविरइय विहूसण परितजिय रयणमय विहूसण | घत्ता-इय थुणेवि तियसणाहेण णिरु पुणु पुच्छिउ परमेसरु । तहिं सत्तहँ तच्चहँ भेउ णिरु तं णिसुणेवि जिणेसरु ॥१९६।। 10 भासइ अहर-फुरण-परिवजिउ दोविह जीव सिद्ध-संसारिय णिञ्चेयर-मरु-महि-जल-तेयहँ खयरामर नर नियरहिं पुजिउ । ... संसारिय णिय-कम्मे भारिय । सत्त-सत्त लक्खई फुडु एयहँ । २. १. J. V.ल्लि । ३. १. D. णीरय । २. D.°णारय । ४. १. D."रु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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