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वडमाणचरित
[१०. २.८पंच सयहिं दिय-सुयहें समिल्ले लइय दिक्ख विप्पेण समेल्लें। पुवण्हई सहुँ दिक्खए जायउ_ लद्धिउ सत्त जासु विक्खायउ । तम्मि दिवसे अवरण्हए तेण वि सोवंगा गोत्तम णामेणवि। जिण-मुह-णिग्गय-अत्थालंकिय वारहंग सुय-पय रयणंकिय । घत्ता-संपत्त सयल अइसय जिणहो रयइ थोत्तु गुरु भत्तिए ।
सेहर मणियर भासिय गयणु वित्त सत्तु णियखंतिए ।।१९५।।
जय देवाहिदेव दुरियासण
जीवाजीव-विभेय-पयासण । जय रयणमय-पंचवयणासण
चउ-गइ भव दुक्खोह पण्णासण । जय सयलामल केवल-लोयण
लोयालोय भाव अवलोयण । जय सयलंगि-वग्ग-मण-संकर
सिद्धि पुरंधिय संकर संकर । जय जिणवर-तित्थयर-दियंवर णिय जसोह णिजिय सरयंवर । जय दयलय परिवड्ढण विसहर णिद्दारिय रइवर सर विसहर । जय पंचेदिय-हरिण-मयाहिव
छद्दवाईरिय तिजयाहिव । जय लोहाहिय संथुय णीयर मुह-पह-णिन्भच्छिय णवणीयरें। जय दिव्वझुणि पूरिय सुरवह तिरयण विणिवारिय असुहरवह । जय धणवइ पविरइय विहूसण परितजिय रयणमय विहूसण | घत्ता-इय थुणेवि तियसणाहेण णिरु पुणु पुच्छिउ परमेसरु ।
तहिं सत्तहँ तच्चहँ भेउ णिरु तं णिसुणेवि जिणेसरु ॥१९६।।
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भासइ अहर-फुरण-परिवजिउ दोविह जीव सिद्ध-संसारिय णिञ्चेयर-मरु-महि-जल-तेयहँ
खयरामर नर नियरहिं पुजिउ । ... संसारिय णिय-कम्मे भारिय ।
सत्त-सत्त लक्खई फुडु एयहँ ।
२. १. J. V.ल्लि । ३. १. D. णीरय । २. D.°णारय । ४. १. D."रु।
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