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asमाणचरिउ
घत्ता -
- जिण पय रय हो दह सय-भवहो आणए धणउ समप्पइ । तो भूइँ [ य दूसणइँ ] हियइ न किंपि वियप्पई ||१८६||
सिय पक्खे सेसि वे वैड्डइ सुहेण अण्णहि दिणे तो तिजए सरासु चारण- मुणि- विजय सुसंजए हि एक दिवड - महरुहि स-डिंभु देखेवि सुरेण सइँ संगमेण वेढि वडमूल फणावलीहिँ तं णिएवि वाल विडिय -रएण लीलाएँ ठवंतु पय-वड्ढमाणु उत्तरि वडुहो गयसंकु जाम हरिसिय-मणेण तहो जिणवरासु अहिसिंचिवि कणय - कलस - जले हिँ महवीरु णामु किउ तक्खण
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धत्ता - सो परम जिणु कवडेण विणु रमइँ जाम सहु बालहिं । खेर-रहिं फणिवइ- सुरहिं मणु हरंतु सोमालहिं ॥ १८७॥
१८
परिहरियउ ताम सिसुत्तणेण आलिंगिउ णव - जोठवण - सिरीप्र
णु सह- जाहिं दहगुणेहिं हु सत्त हत्थ विग्गहु रवण्णु अमरोवणीय-भोयइँ भवारि जावच्छइ जिणु ता गलिय तासु त्यंतरे किंपि णिमित्तु देखि अवहिन चिंतइ सभवाइँ पाहु इंदि - वितित्तिविसएसु जाम उडामर गाणा-मणियरेहि
१७
जिण वरु सहुँ भव्व-मणोरहेण । किउ सम्म णामु जिणेसरासु । तदंसण- णिग्गय-संस एहि । सम्म रमंतु परिमुक डिंभु । विउ रु०वेविणु तासण - कएण । दह-यहिँ हिं दीवावलीहिं । जो त्थु तेत्थु भाविय भएन । तो फणिणाह हो सिरि लद्ध माणु । जीणेवि णिब्भउ देवेहिँ ताम | हरिसिउ सरू परमेसरासु । पुजिवि आहरहिं णिम्मले हिँ । जाणिउ असेस तिहुवण-जणेण ।
कइवय-वच्छरहिं अणुक्कमेण । पियकारिणि पुत्तु मोहरी । भूसिउ णस्से - पुरस्सरेहिं । कणियार- कुसुम - संकास- वण्णु | जंतु कोह - सिहि समण - वारि । वच्छर हूँ तीस णिज्जिय सरासु । खण भंगुरु तणु भउ-भोउ लेखि । परिवाडिया वि पयणय सणाहु । लोयंतिय देव पहुत्त ताम । सुरधणु करंतु हे सुहयरेहि ।
धत्ता-तहो पयजुवइँ सुरयण-थुवइँ गर्ववि सविणउ पयासहि । विमल - मण मणरुह-दलण गयणट्टिय आहा सहि ॥ १८८ ||
[ ९. १६. १३
४. D. J. V. प्रतियोंमें यह चरण त्रुटित है । प्रसंगवश अनुमानसे 'गय दूसणई' पद संयुक्त किया गया है । ५. व्यावर प्रतिमें ९।१६।११ एवं ९।१६।१२ को पंक्तियाँ मूल प्रतिकी पृष्ठ सं. ६६ ख के ऊपरी हाँसिएमें परिवर्तित लिपिमें अंकित हैं ।
१७. १-३. D. ससि वड्डुइ । J. V. ससिउ वट्टइ । ४. D. इ । ५. J. V. णी ं । ६. D. णि ।
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