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________________ २१४ वडमाणचरिउ [९.१५.१ १५ जय तिजय-णलिण-चण-दिवसयर खल-पलय । जय विगय-मल कमल-सरिस-मह गय-विमल। जय अमर-णर-णियर-गयण यर-सिर-तिलय । जय अभय भर हिय विमलयर-गुण-निलय । जय अलस ससि-किरण जय भरिय-भवण-यल। जय अमर-विहिय-थुवि-रव-झुणिय-गयण-यल । जय सदय दिय दुरिय हय-जणण-जर-मरण | जय विहिय जय दमण रइ रमण विसमरण । जय विस विसि विसम-विसहरण मह-पिवर । जय ण्हवण-जले-धवल-पवह-धुव-गिरि-विवर । जय असम-समसरण सुविरयण-सिरिसहिय । जय णिहिल-णय-णिवह विहि-कुसल पर-सहिय । जय सयणु जुइ-पहय-सिरि तविय-सुह-कणय । जय दुलहयर-परम-पय-पउर-सुह-जणय । जय दुसह मय जलहि परिमहण सुक्खुहर । जय असम-सिरि-सहिय पहरिसिय-सुर-कुहर । घत्ता-पुणु तम हरहिँ सुरमण हरहिं सो भूसणहिँ समच्चिउ । सहुँ अच्छरहिँ गय मच्छरहिँ सइँ सुरणाहु पणच्चिउ ॥१८५।। १६ पुणु मरुवहे णीयउ सुरवरेहिँ सो वीरणाहु जिणु णियकरहिं । गेहग्ग वद्धधयं रम्ममाणे कुंडउरि सुरेसर-पुर-समाणे। पियरहँ अप्पिउ खय देह रुक्खु पुत्तावहरण-संजाउ दुक्खु। तुम्हहँ महोउ इय तणुरुहासु पडिबिंबु करेवि सररुह-मुहासु। णेविणु सुर-महिहर-णिम्मलेण अहिसिंचिउ खीरोवहि-जलेण । अहिणउ तुम्हहँ सुउ अरिहु एहु संतत्त-सुवण्ण-सरिच्छ-देहु । इय भणि कुसुमाहरणं वरेहिँ पुज्जेवि जिण-पियर विलेवणेहिं। आहासिवि णामु जिणाहिवासु कुल-कमल-सरोय-दिणाहिवासु। आणंद-भरिय मणि णिय-विमाणे गय सुरवर मणियर-भासमाणे । जिण जम्महो अणुदिणु सोहमाण णियकुल-सिरि देखेवि वड्डमाण । सियभाणु-कला इव सहुँ सुरेहिँ सिरि-सेहर-रयणिहिं भासुरेहिं । देहमें दिणि तहो भववहु णिवेण किव वड्डमाणु इउ णामु तेण । १५. १. D. °ले । २. D.य। १६. १. J. V. वद्धय । २. D. दहमइ दिणि तहो भव । ३. J. V. ढ। 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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