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________________ 5 10 15 विसइ विदेहु णामेण देसु सुपसिद्धउ धम्मिय लोय-चारु पुंजीकर णाइँ धरित्तियाए सिय-गोमंडल- जणियाणुराय जहिँ जण मणरा विणि अडइ भाइ जो सहइ विसाल-जलास एहिँ विमलयर-भव्व-गुण-मंडिएहिँ दियवर-संतइ संसेइएहिँ खेत्तेसु खलत्तणु हयवरेसु कुलित्तणु ल णालय- गणेसु पंट्ठिदि सालि सरोरुहेसु वायरण - णिरिक्खिय जहिं सुमग्ग तहिँ णिवसइ कुंडपुराहिहाणु संधि ९ १ सिरि मंडियउ अवरुंडियउ इह भारहवरे संतरे 1 मायंग धासु कला-भवणा गामा रंग णिरंतरे ॥ Jain Education International खयरामरेहिं सुहयर-पए । णिय-सयल - मणोहर - कंति - सारु | मुणिवर-पय-पंकय-भत्तियाए । सुणिसण मयंकिय मज्झ-भाय । सामन्न निसार - मुत्ति नाइँ | पासट्ठिय तह - विणासएहिं । पयणिय-सुह-पो मालिंगिएहिँ । गय-संखहिणं सज्जण-सएहिं । हंबंध मउ मह गयवरेसु । थडूढत्तणु तरुणीयण-थणेसु । जड-संगहु जहिँ मह-तरुव रेसु । गुण-लोव - संधि-दंदोवसग्ग | पुरुधय-चय-झं पिय-तिव्व भाणु । धत्ता--गयणु व विउलु सुरमिय विउलु सयलवत्थु आधारउ । समय सविसु कय-जल हरिसु संबुह कलाहर भारउ || १७१ || १. १. D.°३° । २. J, V. प्रतिमें यह पूरा घत्ता अनुपलब्ध है । ३. D. तां । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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