SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ बड्डमाणचरिउ [७.९.१ एत्थंतरे इह जंवूदीवए दो-दिणयर-रयणीयर-दीवए । अमरालय-दाहिण-दिसि भायए वर-णंदण-तरुवर-सुच्छायए । भरह-वरिसि सरि-सरयर-सुंदरे कीलण-मण-सुर-भूसिय-कंदरे । अस्थि विसउ सव्वत्थ सणामें अइ-वित्थिणु अवंती णामें। जहिं सासेहिं विव जिय णाऽवणि मुणि-पय-रय-वस-फंसण-पावणि । जहि ण कोवि कंचण-धण-धण्णहिं मणि-रयणिहिं परिह रिउ खण्णहिं । तिणे दव्वु व वंधव-सुहि-सयणहिं जिण-भत्तिए अइ-वियसिय-वयणहिं। जहिं ण रूव-सिरि-विरहिय-कामिणि कल-मयंग-लीला-गइ-गामिणि । रूव सिरि वि ण रहिय-सोहग्गें आमोइय अमियासण-वग्गे । सोहग्गु वि णय-सीलु णिरुत्तउ सीलु ण सुअण पसंस वि उत्तउ । णिजल गई ण जलु वि ण सीयलु अकुसुमु तरु वि ण फसिय-णहयलु । तहिं उज्जेणिपुरी परि-णिवसइ जा देवाह मि माणई हरसइ। घत्ता-घर-पतिहिं मणि-दिप्पंतिहिं उवह सियाऽमर-मंदिर । वहु-हट्टहिं जण-संघट्टहिं वुह-यण-णयणाणंदिर ॥१४५।। 10 कंचण-मय साल सिरी-वरिया जल-पूरिय परिहाऽलंकरिया। गोउर-पडिखलिया-यास-यरा सुरहर-धय-रुधियणे सयरा। जहिं पुरउ मुएविणु पाणहओ रमणीहु मयण खय-विग्गहओ। अइ-सावराहु गच्छइ ण पिउ भमरु व सासाणिल-निम्महिउ । जहिं देक्खिवि लोयह भूरि धणु वो मयर-सुराहँ विहित्त-मणु । णिय-हियंयंतरे पवहंत-हिरि णिदंति कुवेर वि अप्पसिरि । जा सुयरि जणहँ सुचित्तहरा चंदणवल्ली भुववंगहरा। गिव्वाण-पुरी व महा-विउला विवुहालंकिय हरिसिय-विउला । तहिं वजसेणु णामेण णिओ हुवउ वजपाणि-सम भूरि सउ ! वज्जंगु सवंधव सोक्खयरो सुंदरु वज्जालंकरिय-करो। घत्ता-सिरि उरयले जं मुह-सयदले सुअ देवी देवखेविणु। कुवियंगय, जियससियरवय, णावइ कित्ति वि लेविणु ॥१४६।। 10 ९. १.J. V. आ । २.J. V. ते । १०. १. D. J. V.°री। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy