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वड्डमाणचरिउ
[६. १७.१
तुह चित्ति विसुद्धि हवेवि जिह सहसत्ति पयत्तें करहि तिह । वे पंक्ख मेत्तु हो पंचमुह
णिच्छउ मुणि अच्छइ आउ तुह । भणु तियरण-विहिणा ताम णिरु णिय पावजाउ जो आउ थिरु । सार-यर-समाहिए णित्तु कुरु
सण्णासु हिय धरि पंचगुरु । भो गय-भय तुहुँ एयहो भवहो हो होसि भरहे पाउब्भवहो । दहमइ भरि जिणवरु सुरमहिउ कमलायरेण मुणिणा कहिउ । अम्हहुँ अग्गई किंपि ण रहिउ अम्हे हिं वि नियमणे सद्दहिउ । तुह वोहणत्थु तहो वयणु सुणि अम्हेत्थ समागय एउ मुणि । मुणिवर मणु णिप्पहु हुइ जइवि भव्वत्थे होइ सप्पिहु तइवि । वयविरु अणुसासेवि तच्चे पहु हरि-तणु फंसेवि स-यरेण लहु । घत्ता-समणिच्छिय वाणि गय मुणिवर गयणेण ।
अवलोविजंत हरिणा थिर-णयणेण ।।१३४॥
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एत्थंतरे अणरश जाय-मणे
सीहहो मुणि-विरहें कहो-ण जणे । संतहँ विओउ पयणइँ असुहु मयवइ मेल्लिवि मुणिवरह दुहु । सहुँ संगें सइ अणसणहिं ठिउ तत्थ वि सिल-उवर मुणे विहिउ । विणिहिय-तणु णिवडिउ सिलग जिह । ण चलइ दंडु व हरिणारि तिह । जह वर-गुण-गण-वर भावणेहिँ हुउ सुद्ध-लेसु अइ-पावणेहिं। पवणायव-सीय-परीसहह
पीडा ण गणई मण-दूसहहँ। दंसमसय-दट्ठ विसम धरइ |
धीरत्तणु खणु वि न परिहरइ। छुह तण्हा विवसु न खणु वि हुउ जिणवर-गुरु-रंजिउ सीहु मुउ । सुह-धम्म-फलेण मइंदु गउ
सोहम्म सग्गे करि पाव खउ । अमरहर मणोरमे देउ हुउ
णामेण हरिद्धउ पबल-भुउ । घत्ता-सत्त-रयणि-देहु णिरुवम-रूव-णिवासु ।
___सम्मत्त हो सुद्धि पयणई सोखु न कासु ॥१३५।।
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१७ १. J. V°लो। २. J. V. व्व ।
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