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________________ वड्डमाणचरिउ १. श्रीधर नामके ज्ञात आठ कवियोंमें से 'वड्ढमाणचरिउ'का कर्ता कौन ? प्रस्तुत 'वड्डमाणचरिउ' के कर्ता विबुध श्रीधरके अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश-साहित्यमें श्रीधर नामके ही सात अन्य कवि एवं उनकी कृतियाँ भी ज्ञात एवं उपलब्ध हैं। अतः यह विचार कर लेना आवश्यक है कि क्या सभी श्रीधर एक हैं अथवा भिन्न-भिन्न? इन सभी श्रीधरोंका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है १. पासणाहचरिउ ( अपभ्रंश) के कर्ता बुध श्रीधर । २. वड्डमाणचरिउ ( अपभ्रंश ) के कर्ता विबुध श्रीधर । ३. सुकुमालचरिउ ( अपभ्रंश ) के कर्ता विबुध श्रीधर । ४. भविसयत्तकहा ( अपभ्रंश ) के कर्ता विबुध श्रीधर । ५. भविसयत्तपंचमीचरिउ (अपभ्रंश) के कर्ता विबुध श्रीधर । ६. भविष्यदत्तपंचमी कथा ( संस्कृत ) के कर्ता विबुध श्रीधर । ७. विश्वलोचनकोश (संस्कृत) के कर्ता श्रीधर । ८. श्रुतावतारकथा ( संस्कृत ) के कर्ता विबुध श्रीधर । उक्त आठ श्रीधरोंमें-से अन्तिम आठवें विबुध श्रीधरका समय अनिश्चित है। किन्तु उनकी रचना'श्रतावतारकथा' भाषा एवं शैलीको दृष्टिसे नवीन प्रतीत होती है। उनकी इस रचनाके अधिकांश वर्णनों में कई ऐतिहासिक त्रुटियां भी पायी जाती हैं, जो अनुसन्धानकी कसौटीपर खरी नहीं उतरतीं । इनका समय १४वीं सदीके बादका प्रतीत होता है । अतः ये विबुध श्रीधर 'वड्डमाणचरिउ' के कर्तासे भिन्न प्रतीत होते हैं । सातवें 'विश्वलोचनकोश' के कर्ता श्रीधरके. नामके साथ 'सेन' उपाधि संयुक्त होनेके कारण यह स्पष्ट है कि वे 'सेन-गण' परम्पराके कवि थे। उन्होंने अपनी ग्रन्थ-प्रशस्तिमें अपनेको 'मनिसेन' का शिष्य कहा है। ये मुनिसेन सेन-गण परम्पराके प्रमुख आचार्य, कवि एवं नैयायिक थे। उनके शिष्य श्रीधरसेन नाना शास्त्रोंके पारंगत विद्वान् थे तथा बड़े-बड़े राजागण उनपर श्रद्धा रखते थे । विश्वलोचनकोश अथवा नानार्थकोश श्रीधरसेनकी दैवी प्रतिभाका सबसे बड़ा प्रमाण है। वर्ग एवं वर्णक्रमानुसार वर्गीकृत पद्धति में लिखित यह कोश अपने क्षेत्रमें सम्भवतः प्रथम ही है। दुर्भाग्यसे कविने उसमें अपने जन्मकालादि की सूचना नहीं दी है। वि. सं. १६८१ में सुन्दरगणि द्वारा लिखित 'धातुरत्नाकर' में 'विश्वलोचनकोश' का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त इसपर विश्वप्रकाश (वि. सं. ११६२), एवं मेदिनीकोश (१२वीं सदीका उत्तरार्ध) का प्रभाव लक्षित होता है अतः विश्वलोचनकोशकार-श्रीधर का समय १३-१४वीं सदी सिद्ध होता है । इस कारण ये श्रीधरसेन निश्चय ही 'वड्डमाणचरिउ' के रचयितासे भिन्न हैं । १. माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला (सं. २१) बम्बई ( १९२२ ई.) की ओरसे प्रकाशित तथा 'सिद्धान्तसारादिसंग्रह में संकलित पृ. सं.३१६-१८॥ २. जैन साहित्य और इतिहासपर विशद.प्रकाश, (जुगलकिशोर मुख्तार ) कलकत्ता, (१९५६), पृ. ५१८ । ३. नाथारंग गाँधी आकलूज द्वारा प्रकाशित (१९१२ ई.)। ४. सेनान्वये सकलसत्त्वसमर्पितश्रीः श्रीमानजायत कविर्मुनिसेननामा। आन्वीक्षिकी सकलशास्त्रमयी च विद्या यस्यासवादपदवी न दवीयसी स्यात् ॥१॥ तस्मादभूदखिलवाङ्मयपारदृश्वा विश्वासपात्रमवनीतलनायकानाम् । श्रीश्रीधरः सकलसत्कविगुम्फितत्त्व-पीयूषपानकृतनिर्जरभारतीकः ॥२॥ तस्यातिशायिनि कवेः पथि जागरूक-धीलोचनस्य गुरुशासनलोचनस्य । नानाकवीन्द्ररचितानभिधानकोशानाकृष्य लोचनमिवायमदीपि कोशः ॥३॥ -विश्वलोचनकोश, भूमिका, पृ.३ । १. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, ४।६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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