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________________ १२३ ५. ११.१२] हिन्दी अनुवाद १० त्रिपृष्ठ और हयग्रोवकी सेनाओंका युद्ध आरम्भ दुवई गदा, पांचजन्य, खङ्ग, कौस्तुभमणि, चाप ( –धनुष ) एवं सभी प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त कराने में प्रसिद्ध अमोघ शक्तिसे विजयका छोटा भाई त्रिपृष्ठ अजेय हो गया। इसी बीचमें, रणके रसमें रंगे हुए त्रिपृष्ठने हयगलकी, मेदिनी-मण्डलकी रजसे मलिन सेनाको आते हुए इस प्रकार देखा मानो वह अपने ( त्रिपृष्ठके ) तेजसे ही मलिन हो गयी हो। दोनों ओरकी सेनाओंकी गल-गर्जना होने लगी, घोड़े हींसने लगे, पटह ( नगाड़े ) बजने लगे। ५ 'भयभीत एवं डरपोक ही ( रणभूमिके ) बाहर भागता है, किन्तु जो धीर-वीर होता है, वह रणमें शत्रुका सामना करता है।' इस प्रकार कहकर धीर-चित्त वीर ( त्रिपृष्ठ ) ने उसी समय रणके निमित्त अपने योद्धाओंका आह्वान किया। मनोहर उत्तम घोड़ोंके खुरोंके घातसे नवीन मेघजालके समान धूलि उड़कर दोनों ओरकी सेनाओंके आगे इस प्रकार सुशोभित हुई, मानो वह त्रिपृष्ठके तेजका प्रभाव ही हो, जो उस यद्धको रोकने के लिए (बीचमें ) आ गया हो। दोनों पक्षोंके होने- १० वाले ज्याके शब्दोंने घोड़ों, हाथियों और अनेक भटोंको त्रस्त कर दिया। (ज्याके ) उस शब्दको सुनकर उत्तम वीर-रसके अनुरागसे भरे योद्धाओंने रोमांचित-काय होकर स्वयं ही हर्ष-ध्वनि की। तुरन्त ही भट भटोसे, घोड़े घोड़ोंसे, क्रूर अंतरंग वाले हाथी हाथियोंसे तथा रथ रथोंसे, इस प्रकार सभी दर्प युक्त होकर परस्परमें एक दूसरेसे आ भिड़े। घत्ता-बाणासनोंसे छोड़े गये तीक्ष्ण बाण दूरस्थित सुभटोंके शरीरोंपर न ठहर सके। १५ ठीक ही है, जो गुण ( ज्ञानादिक, पक्षान्तरमें धनुषकी डोरी ) को छोड़ देता है, ऐसा कोई भी क्या पृथिवीमें प्रतिष्ठा ( सम्मान, पक्षान्तरमें ठहरना) को पा सकता है ॥१०४॥ दोनों सेनाओंका घमासान युद्ध-वन्दोजनोंने मृतक नरनाथोंकी सूची तैयार करने हेतु उनके कुल और नामोंका पता लगाना प्रारम्भ किया दुवई सुन्दर सुभट परस्परमें अन्य सुभटोंको बुला-बुलाकर मारने लगे और अपने-अपने स्वामियोंके प्रसादसे निक्षिप्त वेगवाले धनुषके शब्दोंसे कन्दराओंको भरने लगे। किसी भटने असिवरसे अन्य शूरवीरकी दोनों जंघाएँ काट डालीं, फिर भी वह (भूमिपर) गिरा नहीं, बल्कि उत्तम वंश (कुल, पक्षान्तरमें बाँस) में उत्पन्न होनेवाला वह चाप-धनुष तथा आत्म-सत्त्वका अवलम्बन कर वहीं ( रणभूमिमें ही सक्रिय ) स्थित रहा। फणीन्द्रके समान अपना ५ धनुष खींचकर किसी योद्धाने कठोर मुट्ठीसे बाण छोड़ा, जिसने दुसरे सुभटके कवच तकको भेदकर - ( आप ही) कहिए कि क्या अपना सशक्त प्रभुत्व नहीं दिखा दिया ? मदोन्मत्त हाथीके मुखपर महावत कपड़ा भी न डाल पाता था कि शत्रु-योद्धा गगनके ऊपरसे ही अपने बाणोंकी वर्षा कर उसे शक्तिहीन बनाकर मार डालते थे। प्रतिपक्षी हाथीके उछलकर गमन करनेके कारण भीषण महाकरीश्वर अपने चर ( महावत ) से ही रूठ गया तथा अपनी प्रचण्ड लम्बी सूंडसे मुख वस्त्र १० • फाड़कर तथा महावतके आदेशका उल्लंघन कर भाग गया। कुछ क्रुद्ध योद्धागण अपनी शिक्षाविशेषको दिखलाते हुए युद्ध में सहसा ही स्वनामाक्षरांकित उत्तम बाणोंसे नरनाथोंके श्वेत वर्णके छत्रोंकी वर्षा करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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