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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org साउनमा वीतरागाया परमेहिदे विमलदिढि हे। चलागनदेखिए वीर देश तारणा समि। वरिनसमासमि। जिग्रह जयसर वीर है। जयसुयमुय रिजविस होगा हा जयाजियाजय साससाद जयसेनवसेव हरदा।। जयादिणादणा जयखमसमपरिवन्नहारा । जयमाल मध्य हो साजयप विदिसुविदियर अविदिक जयसीयल रमारमणाहरणास जयवददष्पहासा जयस भाववायु जयविमल मायलतावमुकाजयत्समयसमय सय सहज जय संता जयधमधमजाज विमलयकेत जयवरयवरयस्प्रति : एजय श्रयियियरकहिया यसंतियसंति श्रमंतरण।। जय सिद्धयसिद्ध. सेवाजय विगयविगयामणिरहमा मिज जयविसयविसयहरमन्निदेवा जयद्रयध्यवत यतीरयणीयपणे मिजयपासच्चासत्रांगदा हा जयविषयविषयसुखरिणाहा धना एजिस वराणिजियरश्वर ( विशिवा रियल विहगा जय सासला विश्वविणासामजय्यदं महाम कहि दिणनर वरने दो। सामाजागणी त्राणंदापेा। जिबराकमलई दिदिशा।। गिम्मलयरमारम मदिरापानाथमकल कमल दिवायरण। जिष्णूनणियागमविहिणायरण पामेणामिवंदे तु लोकइमि रिहरसा जिहविर श्वखितवाशिमं साजवतोय हाशिम वेदूष्यद संति जिस राह नह एसराय दोसरा ट्रांतिदज इविरयहिदीर है। जिगणास्त्र । समयादि के नृपतिपाख/ अंतिमतियर हथि स्राखतारिम जियराणायाम मोहरा शविषनेतिर निरुपयणियसुहार्तोवि मासिन सिरिहरेक शर्मा सर मणियत्रिए जितापयत्तत्रिय। तिहजिह समा तंपिविद्या इमणिसरसइ मणिसे! नरेश संकष्णवियप्यपरिदरे। वह रियगो कृतपुरुष।संवे। हिय नवे लोक हे।ा नावावाक तमो हिरामा साप प्रेमि वेदायरियनाम इह बूदीवइदीव राशपरिनमिरमिहणणरक तराशन गरिदा दिदिसिनर रखे। वडवा दिविसिय विविहवेतच पिसदे। गियसपद्रिनि जियसयल देख। देवाविसमा हहिजि जम्मु इरुसिवितियसावासरम् । जोर सिवाय सहावा । पियरयाणायरण्यवहि। कूलामलजलपरिरियदि। विडिमसालिकयारए हि। जोणायवेलि XIN वड्ढमाणचरिउ ( ब्यावर - प्रति ) का प्रथम पत्र
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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