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________________ ३. ४.२] हिन्दी अनुवाद शब्दोंसे आकाश बहरा हो जाता है। जहाँ जंगम जीवराशि भी परिपालित रहती है ( वहाँ त्रसजीवराशिकी परिपालनाका तो कहना ही क्या ) जहाँ त्रिकरणों अर्थात् मन, वचन एवं कायकी शद्धि कही जाती है, जहाँ परद्रव्य-हरणमें लोगोंके हाथ संकुचित तथा मनियोंके लिए दान एवं ५ जिनोत्सवकी विधियोंमें दान देने में समर्थ हैं। जहाँके लोगोंकी वृत्ति परनारीके निरीक्षण करने में निवृत्तिरूप तथा मुनि-कथित शिक्षाके पालन करने में प्रवृत्तिरूप है। क्रोध, मद, माया एवं गर्वसे दूर रहते हैं । वन्दीजनोंको द्रव्य दिया करते हैं। भव्यजन शीलरूपी आभरणोंसे अलंकृत हैं तथा जहाँ सभी जन बिना किसी उपद्रवके निवास करते हैं पत्ता-उस राजगृहीमें कर्तव्य-कार्योंकी चिन्ता करनेवाला, बैरियोंको हरानेमें समर्थ १० बाहुओंवाला एवं लक्ष्मीसे समृद्ध 'विश्वभूति' इस नामसे प्रसिद्ध एक नरनाथ राज्यभोग करता था ॥४१॥ राजा विश्वभूति और उसके कनिष्ठ भाई विशाखभूतिका वर्णन । मरीचिका जीव ब्रह्मदेव विश्वभूतिके यहाँ पुत्र रूपमें जन्म लेता है वह राजा विश्वभूति प्रणयीजनोंके नेत्रोंके लिए आनन्दका कारण, समस्त विधेय एवं हेयका प्रकाशक, अतिनिर्मल नयरूपी सुन्दर चक्षुवाला ( अर्थात् नय-नीतिमें निपुण ) उत्तम भोगोंमें इन्द्रको भी पराजित कर देनेवाला, भुज-युगलकी शक्तिरूपी लक्ष्मीसे आलिंगित शरीरवाला, अपने कुलरूपी आकाशके लिए आभूषण-स्वरूप, सित पतंग-सूर्य, परिजनों एवं स्वजनोंका पालक एवं अपने निर्मल-यशसे पृथिवीके अग्रभागको धवलित करनेवाला था। उस राजाका विशाखभूति, इस नामसे प्रसिद्ध एक सहोदर कनिष्ठ भाई था, जो लोगोंके मनोंको इष्ट, गुरुजनोंकी विनयपूर्वक आराधना करनेवाला तथा दीन अनाथोंको धन देनेवाला था। ज्येष्ठ भाई-राजा विश्वभूतिकी भार्याका नाम 'जयनी' था, जो लज्जाशील एवं प्रियतमके चरणकमलोंका ध्यान करनेवाली थी। वह ऐसी प्रतीत होती थी, मानो वह राजाके नवयौवनकी लक्ष्मी ही हो, उसके नेत्र निर्मल नील-कमलके दलके समान थे, उसके शरीरकी कान्तिके बराबर १० तीनों लोकोंमें अन्य कोई न था। उसमें एकत्रित गुण-समूह सभी जनोंमें आश्चर्य उत्पन्न करते थे। कनिष्ठ भाईकी लक्ष्मणा नामकी मनोज्ञ भार्या थी, जो नाना प्रकारके उत्तम लक्षणोंसे युक्त थी। घत्ता-वह ( पूर्वोक्त ब्रह्मदेव ) त्रिदशावाससे चयकर ज्येष्ठ भाई विश्वभूतिके यहाँ शरीर, बल, श्री, रूप आदि अनेक गुणोंके लिए स्थानस्वरूप तथा समस्त सौभाग्योंके साथ अत्यन्त सुन्दर १५ कान्तिवाले पुत्रके रूपमें उत्पन्न हुआ ॥४२।। विश्वभूतिको विश्वनन्दि एवं विशाखभूतिको विशाखनन्दि नामक पुत्रोंकी प्राप्ति तथा प्रतिहारीको वृद्धावस्था देखकर राजा विश्वभूतिके मनमें वैराग्योदय पिताने उस नवजात शिशुको नाना प्रकारके गुणोंका नियोगी जानकर उसका नाम विश्वनन्दि रखा। लघु भाई विशाखभूतिको अपने कुलरूपी कमलको आनन्दित करनेवाला विशाखनन्दि नामका पुत्र हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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